Wednesday, October 31, 2018

यात्राओं और परिक्रमाओं से साफ नहीं होगी मां नर्मदा

विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट तेज होने लगी है। पक्ष व विपक्ष के बीच बयानबाजी में आरोप - प्रत्यारोपों का दौर जारी है। चुनावी सभाएं शुरू हो चुकी है लेकिन इन सभाओं में छोछले मुद्दे ही गर्माएं रहते है। अहम मुद्दों की ओर कोई भी राजनेता जनता का ध्यान खींचना नहीं चाहता है। हां संवेदनशील मुद्दों पर अपनी राजनीति चमकाने का अवसर कोई नहीं खोना चाहता। ऐसे ही मुद्दों में नर्मदा संरक्षण व सफाई का मुद्दा है। नर्मदा संरक्षण के नेता मंच से वादे तो बड़े- बड़े करते है और नर्मदा किनारें कई राजनीतिक यात्राएं भी हुई लेकिन नर्मदा की भलाई के लिए सार्थक पहल दूर- दूर तक नजर नहीं आती । नर्मदा अपने प्राक्टय स्थल से लेकर हर स्थान पर प्रदूषित होती जा रही है। मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ताजा मासिक रिपोर्ट में नर्मदा नदी के जल को ‘‘बी‘‘ केटेगिरी में शामिल किया है यानि जल प्रदूषण की श्रेणी है। प्रदेश की जीवदायिनी कही जाने वाली मां नर्मदा नदी को स्वच्छ बनाने को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिसंबर 2016 से लेकर मई 2017 तक छह माह लंबी नर्मदा सेवा यात्रा कर लोगों का ध्यान नर्मदा की ओर खींचा जरूर था लेकिन इस यात्रा पर सरकार ने जितना पैसा पानी की तरह बहाया उतना नर्मदा के उत्थान में लगाया होता तो वाकई नर्मदे हर सार्थक हो चुका होता। विधानसभा में सरकार ने माना की यात्रा पर 40 करोड़ रूपए खर्च हुए, लेकिन सूत्रों की माने तो प्रचार पर करीब 100 करोड़ खर्च किए। सीएम की यात्रा का कोई आउटपुट डेढ़ साल बाद भी नजर नहीं आ रहा है। नर्मदा के लिए न तो कोई योजना बनी है और ना ही वर्तमान योजनाओं पर युद्ध स्तर से कार्य हो रहा है। नर्मदा में जगह- जगह पर नालों का पानी मिल रहा है वहीं कई फैक्टीयों का प्रदूषित कचरा सहित कई तरह के मानव प्रदूषण द्वारा नदी पर अत्याचार जारी है। नर्मदा में हो रहे प्रदूषण के कई प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कारण है। इनमें हर एक कारण का जड़ से निदान करना अब बहुत जरूरी हो गया है। समय हाथ से फिसलता जा रहा है अगर अभी भी हम नहीं संभले तो नर्मदा के अस्तित्व पर खतरा और गहराता जाएंगा। मानव निर्मित प्रदूषण पर तो पूरी तरह रोक लग जानी चाहिए । हम नर्मदा को मां की तरह पूजते है इसीलिए तो उसमें स्नान कर हम अपने को पवित्र करने की कोशिश करते है। यूं तो बारह महिने मां नर्मदा में स्नान करने श्रद ्धालु पहुंचते है वहीं माह की खास तिथियों पर श्रद्धालुओं का बेजा हुजूम उमड़ता है लेकिन ये सारी भीड़ पवित्र नदी में मात्र स्नान के लिए नहीं आती बल्कि कई तरह का प्रदूषण फैलाकर चली जाती है। इस तरह हमारी पूजा तो पूरी तरह अपवित्र हो गई और हमारा स्नान - ध्यान भी व्यर्थ गया। हमने - आपने सैकड़ों बार ऐसे दृश्य देखे होंगे जिनमें लोग साबुन लगाकर स्नान कर रहे है, साबुन से कपड़े धो रहे है , अपने वाहनों को धो रहे है, स्नान के बाद पूजन सामग्री के रेपर वहीं छोड़ देते है और हवनादि सामग्री को नदी में ही विसर्जित करते है इसी तरह के ढ़ेरो कृत्य हम नर्मदा के साथ कर रहे है। नर्मदा हमारे लिए मां स्वरूप व जीवनदायिनी है और हम इस तरह के कृत्यों से मां की पूजा के बजाएं उनका अपमान कर रहे है । मां के भक्त नंगे पैर मां नर्मदा की परिक्रमा करते है यहीं नहीं कई श्रद्धालु तो षष्टांग प्रणाम करते हुए पैदल यात्रा करते है । इतनी श्रद्घा भक्ति के बाद यदि हम मां का इस तरह से अपमान करेंगे तो सारी पूजा व्यर्थ है। हमें स्वयं इस बात को समझना होगा और जितना हम से बन पड़े मां नर्मदा की सफाई में योगदान देना होगा यही मां के प्रति हमारी सच्ची भक्ति होगी कोसों तक पैदल चलकर मां के दर्शन कर यदि हम मां को थोड़ा सा भी प्रदूषित करते है तो इतनी लंबी पैदल यात्रा का कोई महत्व नहीं है इसके बजाए आप मां के किनारों की सफाई करें, नदी से कुछ दूर पौधारोपण करें और श्रद्धा का स्थल होने के नाते मां नर्मदा में घंटो समय बिताने के बजाए नदी में मात्र डुबकी लगाकर बाहर आने की प्रथा का सभी को पालन करना होगा तभी हम अपनी जीवनदायिनी मां नर्मदा को स्वच्छ व सुरक्षित रखने में थोड़ा सा योगदान दे पाएंगे। पहले हम अपने स्तर मां नर्मदा को साफ रखने का प्रयत्न करें उसके बाद दूसरों से साफ रखने की अपील करें। सरकार को भी परिक्रमाएं व यात्राएं करने के बजाए जमीनी स्तर पर ऐसी ठोस योजना बनानी होगी ताकि नर्मदा में मिलने वाले प्रदूषित पानी को रोका जा सके । वहीं नदी में हो रहे अवैध खनन पर पूरी तरह से रोक लगाना होगा क्योकि रेत पानी को साफ बनाए रखने में अहम योगदान देती है । नदी में से बेपनाह रेत निकालकर अभी तक हम मां नर्मदा का सीना छलनी कर चुके है सिर्फ अपने लाभ के लिए हमने नर्मदा का उपयोग किया है नर्मदा की भलाई के लिए अभी तक उस स्तर पर प्रयास नहीं हो रहे है जिसकी वर्तमान में दरकार है। अवैध रेत खनन करने वाले माफियाओं को किसी का भय नहीं है खुले आम अवैध खनन करते है और अपनी रंगदारी भी बताते है । ऐसे कई मामले अभी तक सामने आ चुके है जिनमे यह देखा गया है कि यदि किसी पुलिस वाले ने अवैध माफियाओं के खिलाफ आवाज उठाई है तो उनकी आवाज को दबा दिया गया है। ऐसे में सरकार की मंशा पर भी प्रश्न चिन्ह लगता है । सरकार को ऐसे माफियाओं के खिलाफ सख्त होना होगा ताकि नर्मदा का सीना छलनी होने से बच सकें। हमने अपनी स्वार्थ सिद्धी के लिए नर्मदा को प्रदूषित किया है बावजूद इसके मां नर्मदा ने अपनी ओर से हमें देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है ऐसे में हमारा यह कत्तवर्य बनता है कि मां नर्मदा कि भलाई के लिए हम अपने स्तर पर छोटे से छोटा ही सही प्रयास जारी रखे क्योंकि बूंद-बूंद से गागर भरता है।

Wednesday, January 10, 2018

दर्दनाक हादसे लेकिन बेपरवाह जिम्मेदार

वर्ष की शुरूआत भयानक सड़क हादसों से हुई है, जिनमें मासूमों को जान गंवानी पड़ी है। 6 जनवरी शनिवार को इंदौर के दिल्ली पब्लिक स्कूल की बस का भयानक एक्सीडेंट हुआ, जिसमें चार मासूम बच्चों की मृत्यु को गई। इस दर्दनाक हादसे ने कई परिवारों की खुशियां छीन ली बदहवास परिजन अपने बच्चों के लिए बिलख रहे है। वहीं दूसरी ओर यह यक्ष प्रश्न हम सभी के सामने खड़ा है कि क्या हालात सुधरेंगे क्योंकि सभी के बच्चे वेन और स्कूल बसों से स्कूल काॅलेज जाते है। इतने बड़े हादसों के बाद भी मात्र जिम्मेदारी तय करने जैसे दिखावा होता है। जब तक मामला मीडिया में सुर्खियों में रहता है बस तभी तक उस पर बहस व बात होती है। उसके बाद कोई झांकने वाला नहीं होता है। इस मामले में भी गलती कई स्तरों पर हुईहै जिसका खामियाजा मासूम बच्चों को भुगतना पडा है। बस की फिटनेस को लेकर जहां स्कूल प्रबंधन ने लापरवाही की वहीं आरटीओकी भी भयानक गलतियां सामने आ रही है क्योंकि जब गाड़ियों को फिटनेस सर्टिफिकेट दिया जाता है तो नियम पूर्वक कार्रवाही नहीं होती मात्र कागजी खानपूर्ति कर सर्टिफिकेट जारी कर दिया जाता है और सभी बेफिक्र हो जाते है और बसे व वैन धड़ल्ले से बेपरवाह दौड़ती रहती है। जब कोई ऐसा दर्दनाक हादसा हो जाता है तब सुधार की बात की जाती है तो मेरा यहां यही सवाल है कि जब परिजन इतनी मोटी फीस देकर बच्चों को बड़े स्कूलों में भेज रहे तो बच्चे की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी स्कूल प्रबंधन की होनी चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं है। स्कूल प्रबंधन पैसा तो हर चीज का वसूलते है लेकिन उस स्तर की सुविधाएं क्यो मुहैया नहीं कराते है। उनकी यह लापरवाही अभिभावकों पर भारी पड रही है उनकी गलती ने माता-पिता से उनके आंख के तारों को छीन लिया है जिसे कोई दोबारा उन्हें नहीं दे पाएंगा। स्कूल के खिलाफ भलेही कोई भी कार्रवाही हो जाएं लेकिन उससे न तो स्कूल बंद होगा न स्कूल की कमाई पर कोई फर्क पड़ेगा जिनका सब छिन न था छिन चुका । अब कोई भी कार्रवाही उन अभिभावकों को उनकी खुशियां नहीं लौटा सकती, लेकिन हां यहां अभी की सर्तकता आगे ऐसे हादसे होने से रोक सकती है। इस मामले में चैतरफा गलतियां उजागर हुई है और सुधार भी उसी स्तर का हो तभी उसका सकारात्मक असर नजर आएंगा। सड़क पर अनाड़ी भी गाड़ियां दौडा रहे है और कंडम गाड़िया भी दौड़ रही है। इस हादसे के पहले भोपाल के बैरागढ़ में एक दर्दनाक सड़क हादसा हुआ था, जिसमें एक नौसिखियां कार चालक ने स्कूल की बस का इंतजार कर रही दो मासूम छात्राओं पर गाड़ी चढ़ा दी थी, जिसमें एक की मौत हो गई थी और दूसरी घायल हो गई थी। इस मामले में भी आरटीओ की गलती सामने आई थी कि एक वह व्यक्ति कार चलाना सीख रहा था, जबकि उसके पास पहले से ही डाइविंग लाइसेंस था। इस तरह के व्यक्तियों को कैसे डाइविंग लाइसेंस जारी किया जा सकता है उस व्यक्ति की गलती ने एक मासूम की जिंदगी छीन ली। इसका मतलब लाइसंेस की उपयोगिता ही खत्म हो गई जिसे वाहन चलाना नहीं आता उसके पास लाइसेंस है और कई बिना लाइसेंस के ही वाहन धड़ल्ले से दौड़ा रहे है। लाइसेंसे की प्रक्रिया में बिचैलियों व पैसा लेकर लाइसेंस बनाने के कई मामले सामने आ चुके है । कई हादसे हो चुके है, लेकिन बावजूद इसके न तो प्रशासन न ही सरकार के कान पर जूं रेंग रही है। ऐसे में उन परिवारों के दुखों के लिए कौन जिम्मेदार होगा जिनके चिंरागों को इन सड़क हारसों ने छीन लिया ? बेलगाम व्यवस्था पर लगाम लगाना होगा ताकि अब ऐसे दर्दनाक हादसे न झेलेना पड़े। श्रद्धा अग्निहोत्री