Friday, April 24, 2020

चावल की बंपर आवक से बनेगा सेनेटाइजर ना कि भूखे को भोजन

देश में चावल की फसल जरूरत का तीन गुना उपलब्ध हैयानि जितने चावल की आवश्यकता है उसका तीन गुना चावल खाद्य भंडार मेंरखा है। सरकार इस अत्यधिक चावल से सेनेटाइजर बनाने की योजना बना रहीं है। दरअसल कोविड - 19 के चलतेदेशभर में सेनेजाइजर की मांग बढ़ गई है। घर, बाहर, दफ्तर सभी जगह सेनेटाइजर की आवश्यकता है। जिसके चलते सेनेटाइजर की काला बाजारी भी शुरू हो गई थी । इसकी मांग को देखते हुए सरकार ने चावल से सेनेटाइजर बनाने को मंजूरी देने की बात कह रहीं है। हालांकि यहां बुनियादी सवाल यह हैकि जहां लाखों लोगों को भोजन नसीब नहीं हो रहा है ऐसे हालातों में चावल का इस तरह दुरूपयोग करना कहा तक उचित है। सोचने वाली बात है कि हमने ऐसी कई तस्वीरे देखी जिनमें लाखों गरीबों के पास भोजन नहीं पहुंच रहा है। किसी के पास एक वक्त का भोजन पहुंच रहा है तो किसी कोपेटभर खाना नहीं मिल पा रहा है। कई मजदूरों के परिवार वाले भूखमरी की कगार पर पहुंच गए है। वहीं कई जगहों पर ऐसे हालात है कि मजदूर सुबह छह बजे से भोजन की लाइन में लग रहे है ताकि 12 बजे भोजन खुलने पर उनका नंबर जल्दी आ जाएं। 10 से 12 घंटे के इंतजार के बाद उन्हें एक वक्त का भोजन नसीब हो रहा है ऐसे हालातों में इन लोगों तक दोनों वक्त का भोजन पहुंचाने के बजाएं सरकार सेनेटाइजर बनाने पर विचार कर रहीं है। शर्म की बात है कि जिस देश में गरीब के पास खाने को नहीं है महामारी के ऐसे हालातों में भी सरकार को उस वर्ग की चिंता है जो सेनेटाइजर का उपयोग करती है ना कि उन गरीबों की जिन्हें एक वक्त का भरपेट भोजन तक नहीं मिल रहा और किसी - किसी को तो कई - कई दिनों तक भूखा रहना पड़ रहा है। हमने मजदूरों के पलायन की भयावह तस्वीर देखी है जिनमें हजारों किलोमीटर की यात्रा के लिए यह बेसहारा मजदूर पैदल ही निकल पड़े थे। इनमें से कितने अपने गंतव्य तक पहुंचे होंगे। बिना खाएं पिएं आखिर बेचारे कैसे अपनी मंजिल तक आसानी से पहुंच सकते है। वहीं अभी भी कई राज्यों में प्रवासी मजदूर फंसे हुए है। बीच - बीच मेंवे सड़कों पर आकर अपनी उपस्थिति का अहसास करा रहे है। पेट की आग तो बूझाना पड़ेगा दूसरे राज्यों में जैसे - तैसे दिन कांट रहे इन मजूदरों के लिए भोजन की व्यवस्था कराने के बजाएं सरकार चावल का उपयोग सेनेटाइजर के लिए करने जा रहीं है। रिजर्व बैंक की प्रेस कांफ्रेस में कहा गया कि देश में अनाज के भंडार भरे हुए है अनाज पर्याप्त मात्रा में है तो उन मजदूरों को संतुष्ट किया गया कि आपको भूखा नहीं रखा जाएगा लेकिन इनमें से कई भूखे रह रहे है ऐसे में सरकार को इस बुनियादी सवाल पर विचार करना चाहिए ताकि चावल का उपयोग सेनेटाइजर की बजाएं भूखों को भोजन देने में किया जाएं।

क्या और तबाही लाएगा कोविड -19 ?

हाल ही में आएं विष्व स्वास्थ्य संगठन के बयान ने दुनिया को और डरा दिया है , जिसमें कोरोना के कहर के बढ़ने के आसार को लेकर चेताया गया है। दुनिया पहले से ही कोरोना से जंग लड़ रहीं है। अभी तक इस महामारी का कोई भी पुख्ता इलाज सामने नहीं आया है। भगवान भरोसे नई- नई विधाओं पर काम किया जा रहा है। दिल्ली में प्लाज्मा थैरेपी से कुछ बात बनती दिख रहीं हैै । हाल ही में एक मरीज को इससे फायदा हुआ जिसके बाद उसे वेंटिलेटर से हटा दिया गया है। वहीं दूसरी ओर राजस्थान में रैपिड टेस्ट किट के परिणाम गलत आने के बाद टेस्टिंग के लिए इनका प्रयोग फिलहाल रोक दिया गया है। हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी की गई सूचना में यह कहा गया कि अब जो कोविड के केस सामने आ रहे है उनमें किसी प्रकार के लक्षण पीडि़त में उभर कर सामने नहीं आ पा रहे है। इस तरह के करीब 80 प्रतिषत मामले सामने आएं जिनमें पीडि़त को कोई परेषानी नहीं थी बावजूद इसके वह कोविड पॉजिटिव पाया गया। इस तरह के आंकड़े और डर पैदा कर रहे है आखिर इस वायरस की हद क्या है। जब कोरोना वायरस का प्रकोप षुरू हुआ था उस समय ऐसी बाते भी कहीं गई थी कि तापमान बढ़ने पर इसका असर षायद कम हो सकता है हालांकि इस बारे में कोई पुख्ता सबूत नहीं थे और ना ही है। लेकिन जिस तरह तापमान थोड़ा बढ़ा है इसके बाद इस वायरस के लक्षण भी बदल रहे है यानि अब यह साइलेंट होकर वार कर रहा है। सबकुछ पता होते हुए भी जब हम इस वायरस को पकड़ नहीं पा रहे थे तो अब जब यह साइलंेट वार करेगा तो सोचिए क्या हालात बनेंगे । वहीं विष्व स्वास्थ्य संगठन ने हालिया बयान भी डराने की ओर ही इषारा कर रहे है। तमाम परेषानियों से जूझते हुए संक्रमितों के बीच रह रहे हमारे स्वास्थ्यकर्मियों, सफाईकर्मियों , पुलिसकर्मियों के लिए यह और परेषान करने वाली स्थिति है। परेषानियों का सिलसिला थमने के बजाएं षायद बढ़ने की ओर इषारा कर रहा है। इस वायरस के चलते कहीं न कहीं पानी के उपयोग की अधिकता बढ़ी है। बार - बार हाथ धोना वहीं अब डर के चलते हम बाजार से लाई गई सब्जियों को भी पहले से अधिक बार धोते है। हालांकि स्वास्थ्य के लिहाज से हाथों की सफाई पर जोर देना अच्छा ही है। लेकिन गर्मियों में जलसंकट की समस्या हमारे देष में नई नहीं है। देषभर से गर्मियों के दौरान आने वाली जलसंकट की कई कहानियां हमने देखी और सुनी है। जिसमें कई - कई कोस चलकर महिलाएं पीने के पानी की जुगत करती देखती है। पानी के लिए जंग जैसे हालात भी बनते हुए हमने देखे है। जमीन में पानी की कमी होने से बोर , हेंडपंप आदि सूखने लगते है। उन हालातों में जब कई लोगों को पीने का पानी तक नसीब नहीं होता ऐसे हालातों में सोचिए ! कि क्या कोरोना से लड़ाई और मुष्किल नहीं हो जाएंगी। इस वक्त ऐसा लग रहा है मानो भगवान दुनिया की परीक्षा पर परीक्षा लिए जा रहीं है, लेकिन परीक्षा की इस घड़ी में हम सभी को अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभानी होगी । यदि हम अपने कर्त्तव्य पथ से नहीं डिगे और अपने कर्म ईमानदारी से करते रहे तो परीक्षा की यह घड़ी भी निकल जाएंगी और ईमानदारों पर प्रकृति भी मेहरबान होगी । विष्वास है। हम इस जंग से एकसाथ लड़कर जरूर जीतेंगे ।

Friday, April 3, 2020

डाॅक्टरों से बदसलूकी - '’ष’र्मनाक...... षर्मनाक ....षर्मनाक ....

कोरोना के कहर से दुनिया कराह रहीं है। इस समय दुनियाभर के लिए यदि कोई आषा की किरणें हैं तो वह डाॅक्टर और पैरामेडिकल स्टाॅफ ही है। दुनिया को उनका षुक्रगुजार होना चाहिए कि अपनी जान व अपने परिवार की फिक्र किए बिना यह लोग निःस्वार्थ भाव से कोरोना पीड़ितों की सेवा में जुटे हुए है। इनकी जितनी प्रषंसा की जाएं कम है ऐसे मुष्किल वक्त में हमें भी अपनी जिम्मेदारियों से भागना नहीं चाहिए। इस समय देष में 2 हजार से अधिक मरीज कोरोना पाॅजिटिव है। देष के सभी राज्यों में कोरोना से मरीजों के संक्रमित होने का सिलसिला जारी है। सभी स्थानों पर सरकारी अस्पतालों में डाॅक्टर संसाधनों के अभाव से जूझते हुए अपनी परवाह किए बिना सेवाएं दे रहे है। ऐसे माहौल में यदि उनके उपर पथराव करने व धूकने जैसी अमानवीय घटनाएं देखने को मिले तो खून खौल उठता है उन लोगों के खिलाफ जो इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहे है। मध्यप्रदेष के सफाई में नंबर वन षहर इंदौर से डाॅक्टरों के खिलाफ दो षर्मनाक घटनाएं सामने आई है। जिनमें एक घटना टाट पट्टी बाखल इलाके की है जहां के अब्दुल हामीद की कोरोना से मौत हो जाने के बाद स्वास्थ्यकर्मी उनके परिजनों को ले जाने और उस क्षेत्र के लोगों की जांच करने आई थी । इस दौरान लोगों ने स्वास्थ्य कर्मियों पर पथराव कर दिया कई लोगों ने मिलकर उन पर हमला बोल दिया । एक स्वास्थ्यकर्मी के मुताबिक वे बमुष्किल वहां से बचकर निकल पाएं नही तो ये लोग इनकी जान ले लेते। वहीं दूसरी घटना इंदौर के ही रानीपुरा की है जहां स्वास्थ्यकर्मियों पर धूकने की घटना हुई थी। जो लोग आपको जिंदगी दे सकते है उनकी जान से यदि इस तरह से खिलवाड़ करना किसी भी रूप में उचित नहीं है। हालांकि राज्य सरकार ने इन दोनों मामलों में आरोपियों पर कार्यवाही करते हुए पहली घटना में आरोपियों पर रासुका और दूसरी घटना में संबंधितों पर एफआईआर दर्ज की गई है। वहीं यूपी के गाजियाबाद में तब्लीगी जमात के कोरोना पाॅजिटिव छह मरीजों ने नर्सो के साथ गलत व्यवहार किया। जानकारी के मुताबिक यहां इन मरीजों ने नर्सो के सामने कपड़े उतारे और अष्लील हरकते की। अगर इस तरह से यह मरीज उन लोगों के साथ बर्ताव करेंगे जो आपको जिंदगी दे रहे है तो यह कतई सहन नहीं किया जा सकता। आखिर ये स्वास्थ्य कर्मी दिन रात किसकी सेवा में लगे हुए है ऐसे में इनके साथ इस तरह का अमानवीय व्यवहार मानवीय गुण को नहीं दर्षाता । इस समय हर जिम्मेदार नागरिक का यहीं फर्ज बनता है कि डाॅक्टरों व स्टाॅफ का भरपूर सहयोग किया जाएं । एक तरफ कोरोना का कहर वहीं दूसरी ओर मरीजों के जानवर नुमा व्यवहार के बीच स्वास्थ्यकर्मियों की सेवाएं अनवरत जारी हैै । संसाधनों के अभाव में सेवाएं देे रहे डाॅक्टर कोरोना पाॅजिटिव मरीजों के बीच में दिन रात रह रहे हमारे डाॅक्टरों के पास पर्याप्त संसाधन भी नहीं है। 30 मार्च को टाइम्स आॅफ इंडिया की खबर के मुताबिक कोलकाता में डाॅक्टरों को रेन कोट दे दिए गए। वहीं कई जगहों पर (पीपीई प्लास्टर प्रोटेक्षन ) की गुणवत्ता कहीं से भी संतोषजनक नहीं है। देष भर में करीब 3.5 लाख पीपीई है अब देषभर से इसकी कमी का षोर सामने आने लगा है। मध्यप्रदेष सरकार भी संसाधनों को जुटाने में प्रयासरत है लेकिन यहां भी संसाधनों की कमी साफ जाहिर है। प्रदेष भर में जहां 900 वेंटीलेटर है वहीं 7.5 करोड़ की आबादी में तमाम सरकारी व गैर सरकारी अस्पतालों को मिलाकर सिर्फ 1200 बस्तर है। करीब 16709 पीपीई है वहीं एन- 95 मास्क 74,380 है जबकि थ्री लेयर मास्क 5 लाख के आसपास है। यानि डाॅक्टर व पैरामेडिकल स्टाॅफ अपनी जान पर खेलकर लोगों की जान बचाने में जुटे हुए है। तमाम परेषानियों से जुझते हुए वे अपनी सेवाएं दे रहे है। यदि डाॅक्टरों की सेफ्टी नहीं होगी तो उनकी जान पर खतरा मंडराता रहेगा। इसी का परिणाम है कि देष में करीब 54 डाॅक्टर कोरोना पाॅजिटिव पाएं गए है। वहीं अकेले इटली में 50 से अधिक डाॅक्टरों की मौत हो चुकी है और 7 हजार से अधिक हेल्थ वर्कर संक्रमित है। इस समय हमें अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए डाॅक्टरों की मदद करना चाहिए। तब्लीगी जमात की जहालत निजामुद्दीन के मरकस में तब्लीगी जमात के लोगों ने जो कांड किया उसका खामियाजा पूरा देष भुगत रहा है। अभी भी ये लोग देष के अलग -अलग हिस्सों में जाकर छुपे हुए है । स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी प्रेस काॅफ्रेंस में कहा गया कि तब्लीगी जमात से जुड़े लोगों के 48 राज्यों में होने की संभावना है । जमात के करीब 647 लोग कोरोना पाॅजिटिव पाएं गए है। इस मुष्किल घड़ी में तब्लीगी जमात ने जो कारनामा किया है उसका अंजाम पूरा देष भुगत रहा है विडंबना यह है कि इनके लोग इलाज में स्वास्थ्य कर्मियों की मदद भी नहीं कर रहे है। वहीं देष के अलग - अलग हिस्सों में अभी भी ये लोग छुपे हुए है। तमाम राज्यों के प्रषासन स्तर पर उन्हें खोजने का प्रयास जारी है । ऐसे में साफ जाहिर है कि लोग जानबूझकर खुद को छुपाकर दूसरों को भी संक्रमित करना चाहते है। ऐसा करके कहीं न कहीं यह देष द्रोही कहलाने का काम कर रहे हैै । यदि ये लोग सच्चे देष भक्त होते तो छुपने के बजाए खुद बाहर आकर अपना टेस्ट करवाते और इस मुष्किल घड़ी में डाॅक्टरों की मदद करते । पुलिसकर्मियों को बरगलाने के बजाएं खुद अपनी पहचान बताते और जो अन्य लोग मौजूद थे उनकी भी जानकारी देते । इन लोगों को पकड़ने के बाद इन पर आपराधिक केस दर्ज करना चाहिए इन्हें आसानी से नहीं छोड़ना चाहिए ताकि इन जैसों को कुछ तो सबक मिल सकें। अन्य गंभीर बीमारियों के मरीजों की आफत कोरोना से चल रहीं इस जंग के बीच वे मरीज आफत में आ गए है जो कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से लड़ रहे है। कैंसर के इलाज के दौरान डाॅक्टर मरीज को लगातार आने की सलाह देते है इलाज को रोकना कैंसर के मरीज के लिए घातक साबित हो सकता है। ऐसे में जब बस , ट्रेन व प्लेन सभी आवागमन के साधन बंद है तो ऐसे में मरीजों का बाहर से आना संभव नहीं है। ऐसे में कैंसर के मरीज जहां है वहीं अपना इलाज करा सकते है। हालांकि आपातकालीन सेवाएं जारी है लेकिन ऐसे में कैंसर के अन्य मरीजों के लिए परेषानियां बढ़ती जा रहीं हैै क्योंकि उनकी कीमोथैरेपी में गैप करना रोग को बढ़ाने जैसा ही है। लेकिन कैंसर के मरीज का कोरोना के संपर्क में आना उनके लिए और घातक सिद्ध हो सकता है। ऐसे में उन मरीजों के डाॅक्टरों का फर्ज है कि उन्हें फोन के जरिए ही जितनी हो सके जानकारी दी जाएं और इस समय वे किस प्रकार अपने इलाज को आगे बढ़ाएं इसकी भी जानकारी देना चाहिए। हालांकि प्रत्येक कीमोथैरेपी से पहले मरीज के कई ब्लड टेस्ट होते है लेकिन इस माहौल में जितना संभव हो डाॅक्टरों को अपने इन मरीजों का भी ध्यान रखना होगा। ताली और दिए के बजाए संसाधनों दरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के कर्मवीरों के लिए पहले ताली और अब दिया जलाकर हौसला अफजाई करने को कहा है। इसके बजाएं इस समय इन कर्मवीरों को संसाधनों की अधिक दरकार है। अपनी जान को दांव पर लगाकर ये दिन - रात कोरोना मरीजों को ठीक करने में जुटे हुए है। इस समय उनका हम रोज भी सम्मान में कुछ न कुछ करें तो कम होगा बजाएं इसके इस वक्त उन्हें जिन संसाधनों की दरकार है। सरकार से निवेदन है कि उस दिषा में तीव्र गति से काम करने की दरकार हैै ताकि डाॅक्टर्स व पैरामेडिकल स्टाफ अपनी पूरी सुरक्षा के साथ इन मरीजों के इलाज में जुटे । असुरक्षा के माहौल में डाॅक्टर्स खुद संक्रमित होते जा रहे है ऐसे में कहीं यदि अस्पतालों को डाॅक्टरों के लिए आइसोलेट करना पड़ जाएं तो आम मरीजों का इलाज कहा होगा । इस समस्या से बचने के लिए जरूरी है कि जल्द से जल्द डाॅक्टरों को अच्छी गुणवत्ता के सुरक्षा कवज मुहैया कराएं जाएं ताकि वे सुरिक्षत होकर कोरोना के मरीजों को सुरक्षित रखने का काम करें।

Thursday, March 26, 2020

कोरोना से पहले भूख - प्यास से मरने की कगार पर बेघर

कोरोना के कहर के चलते हजारों दिहाड़ी मजदूरों की जान पर बन आई है। रोजी - रोटी की आस में महानगरों में रह रहे इन मजदूरों की जिंदगी संकट में आ गई है। वैष्विक महामारी कोरोना के कारण हुए देषव्यापी लाॅकडाॅउन से इनकी रोजी- रोटी छिन गई है। अब ये लोग 400 - 500 किलोमीटर की यात्रा पैदल करने पर मजबूर हो गए है। इनके छोटे - छोटे मासूम बच्चे कई दिनों से भुखे है। परिवार के साथ ये लोग अपने - अपने गांव की ओर पैदल ही निकल पड़े है। इनका कहना है कि सरकार हमारे लिए कुछ करें नही ंतो कोरोना से पहले हम भूख से मर जाएंगे। इनकी हालत को देखकर रोना आ रहा है। हमारे यहां कितनी असमानता है। जिन जगहों पर ये काम कर रहे थे किसी ने इनके बारे में नहीं सोचा कुछ ठेके पर काम करते थे कुछ अन्य संस्थानों में थे। सरकार राषन , सिलेंडर और खातों में पैसा डालने की बात कर रहीं है लेकिन न तो इनका कहीं खाता है। ऐसे में सरकार ने जो ऐलान किया है खातों में पैसा डालने का तो जिन लोगों के पास खाता नहीं है क्या उन्हें जीने का हक नहीं है । उनके लिए रहने खाने की व्यवस्था करना आखिर किसकी जिम्मेदारी है। सरकार ने लाॅकडाउन कर दिया लेकिन इनका और इनके परिवार की फिक्र कौन करेगा ? अगर इस तरह भूखे प्यासे के चलते रहे तो अपने गांव भी सही सलामत पहुंच पाएंगे या नहीं ? उन बच्चों के रोते हुए चेहरे और कई दिनों से भुखे होने की बात सुनकर मेरा दिल दहल गया। आंखों में पानी आ रहा है काष इनकी कोई मदद कर दे। इन्हें किसी तरह पानी और खाना नसीब हो जाएं । देषव्यापी लाॅकडाउन की घोषणा करने से पहले इन्हें सूचना दे दी जाती तो कम से कम ये लोग अपने गांव तो सहीं सलामत पहंुच जाते। गौरतलब है कि कोरोना कहर बनकर दुनियाभर पर टूटा है ऐसे में दुनिया के दूसरे देषों जैसे ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन , आस्टेªलिया आदि ने वहां के मजदूर वर्ग के लिए बकायदा आर्थिक मदद की पूरी व्यवस्था की है। हमारे यहां सरकारे घोषणाएं अवष्य कर रहीं है लेकिन पंजीकृत मजदूरो ं के लिए लेकिन जो पंजीकृत नहीं उनका क्या । इसकी एक बानगी एक रिसचर के आंकड़ों से साफ हो जाती है कि अकेले दिल्ली में दस लाख मजदूर कंस्ट्रक्षन में काम करते है जबकि मात्र 35 हजार मजदूर पंजीकृत किए गए है। ऐसे में अपंजीकृत मजदूरों के लिए कौन इस आफत की घड़ी में देवता बनकर आएगा। इनमें कछ तो ऐसे है जो मुंबई से नेपाल जाने के लिए निकले थे और दिल्ली में आकर फंस गए है। अब ये नेपाल किस तरह पहंुचेगे न तो पैसे है न कोई दूसरी व्यवस्था अब इनका क्या होगा ? किसी का छोटा बच्चा है जिसे दूध चाहिए लेकिन मां ने भी दो दिन से कुछ नहीं खाया है दूध नहीं आ रहा बच्चा भूख के मारे किलप रहा है। हे भगवान ऐसे लोगों की मदद के लिए जल्दी सरकार की आंखे खोलिए । जानते है कि कोरोना भयंकर बिमारी है लेकिन इन लोगों को इस तरह मरने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता इनके लिए सरकार को अपने स्तर पर कुछ व्यवस्था जल्दी करनी होगी उम्मीद की जा सकती है कि किसी गांव में इन्हें मदद मिल जाएं व रहने का ठिकाना मिल जाएं क्योंकि भूखे - प्यासे इतनी लंबी दूरी पैदल तय करना आसान नहीं होगा। ये लोग कुछ दिनों से पानी पी कर दिन कांट रहे है। वहीं जब टेंकर आता है तो भीड़ लग जाती है ऐेसे में टैंकर भी लौट जाते है बहरहाल इन्हें पीने का पानी तक नसीब नहीं हो रहा है। कोरोेना का कहर इन पर दोहरी मार लेकर आया है क्योंकि इन्हें कोेरोना से ज्यादा भूख- प्यास से मरने का डर है। जनवरी में कोरोना का मामला भारत में सामने आ गया था ऐसे में तभी सरकार को सतर्क हो जाना था और मामले की नजाकत को समझते हुए इस बेघर आबादी को उनके घर भेज देना था ताकि ये समय रहते अपने गंतव्यों तक पहुंच जाते। हालांकि डब्ल्यूएचओ भारत के लाॅकडाउन की पहल की सराहना अवष्य की जा रही है लेकिन भारत में लोगों की आर्थिक स्थितियों को ध्यान में रखकर निर्णय लिए जाते तो बेघरों के मासूम बच्चों को भूख - प्यास से इस तरह तड़पना नहीं पड़ता। हालांकि कई स्वयंसेवी संस्थाएं , पुलिस वाले , अन्य संस्थाएं भूूखों को भोजन दे रहे है लेकिन बावजूद इसके एक बड़ी आबादी तक भोजन नहीं पहंुच रहा है। इसलिए ये आबादी पैदल ही अपने गांवों के लिए निकल पड़े है। आखिर क्या करें ये लोग इनके पास और कोई रास्ता भी नहीं है। चंद लोगों की लापरवाहीं ने पूरी दुनिया व देष को संक्रमण के खतरे में डाल दिया है। गौरतलब है कि यह संक्रमण चीन से फैला था यानि विदेषों से यह संक्रमण फैलते - फैलते भारत तक पहंुचा है। भारतीय ने इसे जन्म नहीं दिया है । एक गरीब और आम आदमी तो विदेष नहीं जाता है। समृद्ध परिवार व उनके बच्चे ही विदेष में जाते है या तो घूमने या पढ़ने ऐसे लोगों को यदि उसी वक्त बंद कर दिया जाता तो षायद इन मजदूरांे को इस तरह के हालात से नहीं गुजरना पड़ता। हालांकि एयरपोर्ट पर विदेषों से आएं लोगों से षपथ प़त्र भरवाया गया था कि आप घर में जाकर 14 दिन तक अलग रहेंगे लेकिन लोगों ने इसका पालन नहीं किया इसे गंभीरता से नहीं लिया ये कोई अनपढ़ लोग नहीं थे पढ़े लिखे थे और विदेषों से आएं थे लेकिन इन लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया परिवार से मिले लोगों से मिले और कोरोना का संक्रमण अपनों सहित दूसरों में फैला दिया। अब यह संक्रमण चाहे अनचाहे अन्य लोगों में फैल रहा है। हालांकि सरकार ने लाॅक डाॅउन घोषित किया है इसे सही समय पर करने की बात भी की जा रही है लेकिन यदि यह थोड़ा पहले इन दिहाड़ी मजदूरों की सुध ले लेती तो इनके मासूमों को इस तरह भूख - प्यास के लिए किलपना नहीं पड़ता। अब ऐेसे वक्त में सरकार को इनकी कुछ तो मदद करना ही चाहिए ताकि ये किसी तरह अपने गांव पहुंच जाएं सही सलामत।

Wednesday, October 31, 2018

यात्राओं और परिक्रमाओं से साफ नहीं होगी मां नर्मदा

विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट तेज होने लगी है। पक्ष व विपक्ष के बीच बयानबाजी में आरोप - प्रत्यारोपों का दौर जारी है। चुनावी सभाएं शुरू हो चुकी है लेकिन इन सभाओं में छोछले मुद्दे ही गर्माएं रहते है। अहम मुद्दों की ओर कोई भी राजनेता जनता का ध्यान खींचना नहीं चाहता है। हां संवेदनशील मुद्दों पर अपनी राजनीति चमकाने का अवसर कोई नहीं खोना चाहता। ऐसे ही मुद्दों में नर्मदा संरक्षण व सफाई का मुद्दा है। नर्मदा संरक्षण के नेता मंच से वादे तो बड़े- बड़े करते है और नर्मदा किनारें कई राजनीतिक यात्राएं भी हुई लेकिन नर्मदा की भलाई के लिए सार्थक पहल दूर- दूर तक नजर नहीं आती । नर्मदा अपने प्राक्टय स्थल से लेकर हर स्थान पर प्रदूषित होती जा रही है। मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ताजा मासिक रिपोर्ट में नर्मदा नदी के जल को ‘‘बी‘‘ केटेगिरी में शामिल किया है यानि जल प्रदूषण की श्रेणी है। प्रदेश की जीवदायिनी कही जाने वाली मां नर्मदा नदी को स्वच्छ बनाने को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिसंबर 2016 से लेकर मई 2017 तक छह माह लंबी नर्मदा सेवा यात्रा कर लोगों का ध्यान नर्मदा की ओर खींचा जरूर था लेकिन इस यात्रा पर सरकार ने जितना पैसा पानी की तरह बहाया उतना नर्मदा के उत्थान में लगाया होता तो वाकई नर्मदे हर सार्थक हो चुका होता। विधानसभा में सरकार ने माना की यात्रा पर 40 करोड़ रूपए खर्च हुए, लेकिन सूत्रों की माने तो प्रचार पर करीब 100 करोड़ खर्च किए। सीएम की यात्रा का कोई आउटपुट डेढ़ साल बाद भी नजर नहीं आ रहा है। नर्मदा के लिए न तो कोई योजना बनी है और ना ही वर्तमान योजनाओं पर युद्ध स्तर से कार्य हो रहा है। नर्मदा में जगह- जगह पर नालों का पानी मिल रहा है वहीं कई फैक्टीयों का प्रदूषित कचरा सहित कई तरह के मानव प्रदूषण द्वारा नदी पर अत्याचार जारी है। नर्मदा में हो रहे प्रदूषण के कई प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कारण है। इनमें हर एक कारण का जड़ से निदान करना अब बहुत जरूरी हो गया है। समय हाथ से फिसलता जा रहा है अगर अभी भी हम नहीं संभले तो नर्मदा के अस्तित्व पर खतरा और गहराता जाएंगा। मानव निर्मित प्रदूषण पर तो पूरी तरह रोक लग जानी चाहिए । हम नर्मदा को मां की तरह पूजते है इसीलिए तो उसमें स्नान कर हम अपने को पवित्र करने की कोशिश करते है। यूं तो बारह महिने मां नर्मदा में स्नान करने श्रद ्धालु पहुंचते है वहीं माह की खास तिथियों पर श्रद्धालुओं का बेजा हुजूम उमड़ता है लेकिन ये सारी भीड़ पवित्र नदी में मात्र स्नान के लिए नहीं आती बल्कि कई तरह का प्रदूषण फैलाकर चली जाती है। इस तरह हमारी पूजा तो पूरी तरह अपवित्र हो गई और हमारा स्नान - ध्यान भी व्यर्थ गया। हमने - आपने सैकड़ों बार ऐसे दृश्य देखे होंगे जिनमें लोग साबुन लगाकर स्नान कर रहे है, साबुन से कपड़े धो रहे है , अपने वाहनों को धो रहे है, स्नान के बाद पूजन सामग्री के रेपर वहीं छोड़ देते है और हवनादि सामग्री को नदी में ही विसर्जित करते है इसी तरह के ढ़ेरो कृत्य हम नर्मदा के साथ कर रहे है। नर्मदा हमारे लिए मां स्वरूप व जीवनदायिनी है और हम इस तरह के कृत्यों से मां की पूजा के बजाएं उनका अपमान कर रहे है । मां के भक्त नंगे पैर मां नर्मदा की परिक्रमा करते है यहीं नहीं कई श्रद्धालु तो षष्टांग प्रणाम करते हुए पैदल यात्रा करते है । इतनी श्रद्घा भक्ति के बाद यदि हम मां का इस तरह से अपमान करेंगे तो सारी पूजा व्यर्थ है। हमें स्वयं इस बात को समझना होगा और जितना हम से बन पड़े मां नर्मदा की सफाई में योगदान देना होगा यही मां के प्रति हमारी सच्ची भक्ति होगी कोसों तक पैदल चलकर मां के दर्शन कर यदि हम मां को थोड़ा सा भी प्रदूषित करते है तो इतनी लंबी पैदल यात्रा का कोई महत्व नहीं है इसके बजाए आप मां के किनारों की सफाई करें, नदी से कुछ दूर पौधारोपण करें और श्रद्धा का स्थल होने के नाते मां नर्मदा में घंटो समय बिताने के बजाए नदी में मात्र डुबकी लगाकर बाहर आने की प्रथा का सभी को पालन करना होगा तभी हम अपनी जीवनदायिनी मां नर्मदा को स्वच्छ व सुरक्षित रखने में थोड़ा सा योगदान दे पाएंगे। पहले हम अपने स्तर मां नर्मदा को साफ रखने का प्रयत्न करें उसके बाद दूसरों से साफ रखने की अपील करें। सरकार को भी परिक्रमाएं व यात्राएं करने के बजाए जमीनी स्तर पर ऐसी ठोस योजना बनानी होगी ताकि नर्मदा में मिलने वाले प्रदूषित पानी को रोका जा सके । वहीं नदी में हो रहे अवैध खनन पर पूरी तरह से रोक लगाना होगा क्योकि रेत पानी को साफ बनाए रखने में अहम योगदान देती है । नदी में से बेपनाह रेत निकालकर अभी तक हम मां नर्मदा का सीना छलनी कर चुके है सिर्फ अपने लाभ के लिए हमने नर्मदा का उपयोग किया है नर्मदा की भलाई के लिए अभी तक उस स्तर पर प्रयास नहीं हो रहे है जिसकी वर्तमान में दरकार है। अवैध रेत खनन करने वाले माफियाओं को किसी का भय नहीं है खुले आम अवैध खनन करते है और अपनी रंगदारी भी बताते है । ऐसे कई मामले अभी तक सामने आ चुके है जिनमे यह देखा गया है कि यदि किसी पुलिस वाले ने अवैध माफियाओं के खिलाफ आवाज उठाई है तो उनकी आवाज को दबा दिया गया है। ऐसे में सरकार की मंशा पर भी प्रश्न चिन्ह लगता है । सरकार को ऐसे माफियाओं के खिलाफ सख्त होना होगा ताकि नर्मदा का सीना छलनी होने से बच सकें। हमने अपनी स्वार्थ सिद्धी के लिए नर्मदा को प्रदूषित किया है बावजूद इसके मां नर्मदा ने अपनी ओर से हमें देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है ऐसे में हमारा यह कत्तवर्य बनता है कि मां नर्मदा कि भलाई के लिए हम अपने स्तर पर छोटे से छोटा ही सही प्रयास जारी रखे क्योंकि बूंद-बूंद से गागर भरता है।

Wednesday, January 10, 2018

दर्दनाक हादसे लेकिन बेपरवाह जिम्मेदार

वर्ष की शुरूआत भयानक सड़क हादसों से हुई है, जिनमें मासूमों को जान गंवानी पड़ी है। 6 जनवरी शनिवार को इंदौर के दिल्ली पब्लिक स्कूल की बस का भयानक एक्सीडेंट हुआ, जिसमें चार मासूम बच्चों की मृत्यु को गई। इस दर्दनाक हादसे ने कई परिवारों की खुशियां छीन ली बदहवास परिजन अपने बच्चों के लिए बिलख रहे है। वहीं दूसरी ओर यह यक्ष प्रश्न हम सभी के सामने खड़ा है कि क्या हालात सुधरेंगे क्योंकि सभी के बच्चे वेन और स्कूल बसों से स्कूल काॅलेज जाते है। इतने बड़े हादसों के बाद भी मात्र जिम्मेदारी तय करने जैसे दिखावा होता है। जब तक मामला मीडिया में सुर्खियों में रहता है बस तभी तक उस पर बहस व बात होती है। उसके बाद कोई झांकने वाला नहीं होता है। इस मामले में भी गलती कई स्तरों पर हुईहै जिसका खामियाजा मासूम बच्चों को भुगतना पडा है। बस की फिटनेस को लेकर जहां स्कूल प्रबंधन ने लापरवाही की वहीं आरटीओकी भी भयानक गलतियां सामने आ रही है क्योंकि जब गाड़ियों को फिटनेस सर्टिफिकेट दिया जाता है तो नियम पूर्वक कार्रवाही नहीं होती मात्र कागजी खानपूर्ति कर सर्टिफिकेट जारी कर दिया जाता है और सभी बेफिक्र हो जाते है और बसे व वैन धड़ल्ले से बेपरवाह दौड़ती रहती है। जब कोई ऐसा दर्दनाक हादसा हो जाता है तब सुधार की बात की जाती है तो मेरा यहां यही सवाल है कि जब परिजन इतनी मोटी फीस देकर बच्चों को बड़े स्कूलों में भेज रहे तो बच्चे की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी स्कूल प्रबंधन की होनी चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं है। स्कूल प्रबंधन पैसा तो हर चीज का वसूलते है लेकिन उस स्तर की सुविधाएं क्यो मुहैया नहीं कराते है। उनकी यह लापरवाही अभिभावकों पर भारी पड रही है उनकी गलती ने माता-पिता से उनके आंख के तारों को छीन लिया है जिसे कोई दोबारा उन्हें नहीं दे पाएंगा। स्कूल के खिलाफ भलेही कोई भी कार्रवाही हो जाएं लेकिन उससे न तो स्कूल बंद होगा न स्कूल की कमाई पर कोई फर्क पड़ेगा जिनका सब छिन न था छिन चुका । अब कोई भी कार्रवाही उन अभिभावकों को उनकी खुशियां नहीं लौटा सकती, लेकिन हां यहां अभी की सर्तकता आगे ऐसे हादसे होने से रोक सकती है। इस मामले में चैतरफा गलतियां उजागर हुई है और सुधार भी उसी स्तर का हो तभी उसका सकारात्मक असर नजर आएंगा। सड़क पर अनाड़ी भी गाड़ियां दौडा रहे है और कंडम गाड़िया भी दौड़ रही है। इस हादसे के पहले भोपाल के बैरागढ़ में एक दर्दनाक सड़क हादसा हुआ था, जिसमें एक नौसिखियां कार चालक ने स्कूल की बस का इंतजार कर रही दो मासूम छात्राओं पर गाड़ी चढ़ा दी थी, जिसमें एक की मौत हो गई थी और दूसरी घायल हो गई थी। इस मामले में भी आरटीओ की गलती सामने आई थी कि एक वह व्यक्ति कार चलाना सीख रहा था, जबकि उसके पास पहले से ही डाइविंग लाइसेंस था। इस तरह के व्यक्तियों को कैसे डाइविंग लाइसेंस जारी किया जा सकता है उस व्यक्ति की गलती ने एक मासूम की जिंदगी छीन ली। इसका मतलब लाइसंेस की उपयोगिता ही खत्म हो गई जिसे वाहन चलाना नहीं आता उसके पास लाइसेंस है और कई बिना लाइसेंस के ही वाहन धड़ल्ले से दौड़ा रहे है। लाइसेंसे की प्रक्रिया में बिचैलियों व पैसा लेकर लाइसेंस बनाने के कई मामले सामने आ चुके है । कई हादसे हो चुके है, लेकिन बावजूद इसके न तो प्रशासन न ही सरकार के कान पर जूं रेंग रही है। ऐसे में उन परिवारों के दुखों के लिए कौन जिम्मेदार होगा जिनके चिंरागों को इन सड़क हारसों ने छीन लिया ? बेलगाम व्यवस्था पर लगाम लगाना होगा ताकि अब ऐसे दर्दनाक हादसे न झेलेना पड़े। श्रद्धा अग्निहोत्री

Friday, September 22, 2017

शक्ति को रौंदने वालों को हक नहीं मां की भक्ति का

शक्ति की उपासना के पर्व नवरात्रि आरंभ हो चुकी है। नौदिनों तक मां दुर्गा की विधि - विधान से पूजा अर्चना की जाएगी। जगह -जगह पांडाल व झांकियां सजेगी, गरबा व डांडिया रास होंगे, कन्याभोज व भंडारे का आयोजन किया जाएगा। नौदिनों तक उल्लास का माहौल रहेगा। हम हर वर्ष मां आदिशक्ति की उपासना में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहतेलेकिन कहीं न कहीं हम उपरी आडंबर यह भूल जाते हैकि नवरात्रि आंतरिक उपासना का भी पर्व है। हमारे देश में शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की आराधना पूरी आस्था सेकी जाती है लेकिन आज भी शक्ति का ही स्वरूप महिलाएंअपने वजूद को तलाश रही है। मां के ही स्वरूप में आने वाली नन्हीं कलियों को बेरहमी से आज भी हमारे समाज में रौंदने वालों की कमी नहीं है। मासूम बच्चियोंसे लेकर सशक्त नारी तक कोई सुरक्षित नही ंहै। अब पापों का घड़ा भर चुका है क्योंकि पिता ही बेटी की अस्मत लूट रहे है। हमारे समाज में महिलाएं बेझिझक, निडर होकर आज भी नहीं जा पाती हैमहिला सुरक्षा जैसेगंभीर मुद्दे पर कोई कारगर कदम नहीं उठा पाया है। भ्रूण हत्याएं जारी है, नवजात बच्चियां मृत मिल रही है। आज भी समाज में बेटों की चाह कायम है यहीं नहीं पुरूषों के अलावा महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन है क्योंकि आज भी उनके मन में लड़का - लड़की का भेद याथावत हैऔर लड़का ही वंशवृद्धि का ध्योतक है। यूं तो बडे से बड़ा गुनहगार भी मां का भक्त हो सकता है लेकिन मेरी नजर में लड़कियों को हिकारत से देखने वाले, नवजात बच्चियों को कचरे केढेर में फेंक कर उन पर पत्थर रखने वालों को हक नहीं है कि वे मां की आराधना करे, किसी मासूम बच्ची या महिला को बुरी नजर से देखने वाले को हक नही ंहै कि वह मां की मूर्ति की आंखों में आंखे डालकर देखे, किसी दुष्कर्मी को हक नहीं है कि वह मां के पांडाल केसमीप तक जाएं, कोख में की बेटी को मारने वाले को मां की उपासना का हक नहीं दिया जा सकता। इसी तरह चलोंअब एक लड़का और हो जाएं तो अच्छा ऐसे कहने वालो कोभी एक बार अपने अंदर से इस भेद को मिटाकर ही मां के आगे शीश नवाना चाहिए ।