Thursday, March 26, 2020

कोरोना से पहले भूख - प्यास से मरने की कगार पर बेघर

कोरोना के कहर के चलते हजारों दिहाड़ी मजदूरों की जान पर बन आई है। रोजी - रोटी की आस में महानगरों में रह रहे इन मजदूरों की जिंदगी संकट में आ गई है। वैष्विक महामारी कोरोना के कारण हुए देषव्यापी लाॅकडाॅउन से इनकी रोजी- रोटी छिन गई है। अब ये लोग 400 - 500 किलोमीटर की यात्रा पैदल करने पर मजबूर हो गए है। इनके छोटे - छोटे मासूम बच्चे कई दिनों से भुखे है। परिवार के साथ ये लोग अपने - अपने गांव की ओर पैदल ही निकल पड़े है। इनका कहना है कि सरकार हमारे लिए कुछ करें नही ंतो कोरोना से पहले हम भूख से मर जाएंगे। इनकी हालत को देखकर रोना आ रहा है। हमारे यहां कितनी असमानता है। जिन जगहों पर ये काम कर रहे थे किसी ने इनके बारे में नहीं सोचा कुछ ठेके पर काम करते थे कुछ अन्य संस्थानों में थे। सरकार राषन , सिलेंडर और खातों में पैसा डालने की बात कर रहीं है लेकिन न तो इनका कहीं खाता है। ऐसे में सरकार ने जो ऐलान किया है खातों में पैसा डालने का तो जिन लोगों के पास खाता नहीं है क्या उन्हें जीने का हक नहीं है । उनके लिए रहने खाने की व्यवस्था करना आखिर किसकी जिम्मेदारी है। सरकार ने लाॅकडाउन कर दिया लेकिन इनका और इनके परिवार की फिक्र कौन करेगा ? अगर इस तरह भूखे प्यासे के चलते रहे तो अपने गांव भी सही सलामत पहुंच पाएंगे या नहीं ? उन बच्चों के रोते हुए चेहरे और कई दिनों से भुखे होने की बात सुनकर मेरा दिल दहल गया। आंखों में पानी आ रहा है काष इनकी कोई मदद कर दे। इन्हें किसी तरह पानी और खाना नसीब हो जाएं । देषव्यापी लाॅकडाउन की घोषणा करने से पहले इन्हें सूचना दे दी जाती तो कम से कम ये लोग अपने गांव तो सहीं सलामत पहंुच जाते। गौरतलब है कि कोरोना कहर बनकर दुनियाभर पर टूटा है ऐसे में दुनिया के दूसरे देषों जैसे ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन , आस्टेªलिया आदि ने वहां के मजदूर वर्ग के लिए बकायदा आर्थिक मदद की पूरी व्यवस्था की है। हमारे यहां सरकारे घोषणाएं अवष्य कर रहीं है लेकिन पंजीकृत मजदूरो ं के लिए लेकिन जो पंजीकृत नहीं उनका क्या । इसकी एक बानगी एक रिसचर के आंकड़ों से साफ हो जाती है कि अकेले दिल्ली में दस लाख मजदूर कंस्ट्रक्षन में काम करते है जबकि मात्र 35 हजार मजदूर पंजीकृत किए गए है। ऐसे में अपंजीकृत मजदूरों के लिए कौन इस आफत की घड़ी में देवता बनकर आएगा। इनमें कछ तो ऐसे है जो मुंबई से नेपाल जाने के लिए निकले थे और दिल्ली में आकर फंस गए है। अब ये नेपाल किस तरह पहंुचेगे न तो पैसे है न कोई दूसरी व्यवस्था अब इनका क्या होगा ? किसी का छोटा बच्चा है जिसे दूध चाहिए लेकिन मां ने भी दो दिन से कुछ नहीं खाया है दूध नहीं आ रहा बच्चा भूख के मारे किलप रहा है। हे भगवान ऐसे लोगों की मदद के लिए जल्दी सरकार की आंखे खोलिए । जानते है कि कोरोना भयंकर बिमारी है लेकिन इन लोगों को इस तरह मरने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता इनके लिए सरकार को अपने स्तर पर कुछ व्यवस्था जल्दी करनी होगी उम्मीद की जा सकती है कि किसी गांव में इन्हें मदद मिल जाएं व रहने का ठिकाना मिल जाएं क्योंकि भूखे - प्यासे इतनी लंबी दूरी पैदल तय करना आसान नहीं होगा। ये लोग कुछ दिनों से पानी पी कर दिन कांट रहे है। वहीं जब टेंकर आता है तो भीड़ लग जाती है ऐेसे में टैंकर भी लौट जाते है बहरहाल इन्हें पीने का पानी तक नसीब नहीं हो रहा है। कोरोेना का कहर इन पर दोहरी मार लेकर आया है क्योंकि इन्हें कोेरोना से ज्यादा भूख- प्यास से मरने का डर है। जनवरी में कोरोना का मामला भारत में सामने आ गया था ऐसे में तभी सरकार को सतर्क हो जाना था और मामले की नजाकत को समझते हुए इस बेघर आबादी को उनके घर भेज देना था ताकि ये समय रहते अपने गंतव्यों तक पहुंच जाते। हालांकि डब्ल्यूएचओ भारत के लाॅकडाउन की पहल की सराहना अवष्य की जा रही है लेकिन भारत में लोगों की आर्थिक स्थितियों को ध्यान में रखकर निर्णय लिए जाते तो बेघरों के मासूम बच्चों को भूख - प्यास से इस तरह तड़पना नहीं पड़ता। हालांकि कई स्वयंसेवी संस्थाएं , पुलिस वाले , अन्य संस्थाएं भूूखों को भोजन दे रहे है लेकिन बावजूद इसके एक बड़ी आबादी तक भोजन नहीं पहंुच रहा है। इसलिए ये आबादी पैदल ही अपने गांवों के लिए निकल पड़े है। आखिर क्या करें ये लोग इनके पास और कोई रास्ता भी नहीं है। चंद लोगों की लापरवाहीं ने पूरी दुनिया व देष को संक्रमण के खतरे में डाल दिया है। गौरतलब है कि यह संक्रमण चीन से फैला था यानि विदेषों से यह संक्रमण फैलते - फैलते भारत तक पहंुचा है। भारतीय ने इसे जन्म नहीं दिया है । एक गरीब और आम आदमी तो विदेष नहीं जाता है। समृद्ध परिवार व उनके बच्चे ही विदेष में जाते है या तो घूमने या पढ़ने ऐसे लोगों को यदि उसी वक्त बंद कर दिया जाता तो षायद इन मजदूरांे को इस तरह के हालात से नहीं गुजरना पड़ता। हालांकि एयरपोर्ट पर विदेषों से आएं लोगों से षपथ प़त्र भरवाया गया था कि आप घर में जाकर 14 दिन तक अलग रहेंगे लेकिन लोगों ने इसका पालन नहीं किया इसे गंभीरता से नहीं लिया ये कोई अनपढ़ लोग नहीं थे पढ़े लिखे थे और विदेषों से आएं थे लेकिन इन लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया परिवार से मिले लोगों से मिले और कोरोना का संक्रमण अपनों सहित दूसरों में फैला दिया। अब यह संक्रमण चाहे अनचाहे अन्य लोगों में फैल रहा है। हालांकि सरकार ने लाॅक डाॅउन घोषित किया है इसे सही समय पर करने की बात भी की जा रही है लेकिन यदि यह थोड़ा पहले इन दिहाड़ी मजदूरों की सुध ले लेती तो इनके मासूमों को इस तरह भूख - प्यास के लिए किलपना नहीं पड़ता। अब ऐेसे वक्त में सरकार को इनकी कुछ तो मदद करना ही चाहिए ताकि ये किसी तरह अपने गांव पहुंच जाएं सही सलामत।