Friday, April 24, 2020

पैदल गांव जा रहीं 12 साल की बच्ची की मौत

लॉकडॉउन के बाद से ही प्रवासी मजदूरों का अपने गांव जाने का सिलसिला जारी है। ऐसे ही अपने गांव को पैदल निकले मजदूर के साथ उसका परिवार था। लगातार तीन दिन तक पैदल चलने से 12 वर्षीय बच्ची की तबीयत बिगड़ गई जिससे उस मासूम की मौत हो गई। इसी तरह कई और मजदूरों ने अपनी जान गंवा दी है। बीमारी से ज्यादा भूख से जूझ रहे इन मजदूरों को फिलहाल अपने गांव के अलावा कुछ नहीं सूझ रहा क्योंकि कई मजदूरों के रहने तक का ठिकाना नहीं हो पा रहा है। किसी को एक वक्त का भोजना बमुष्किल मिल पा रहा है तो किसी के परिजन गांव में भूख से तड़पने को मजबूर है। ऐसे में उनकी चिंता भी इन मजदूरों को खाई जा रहीं है। अपना घर चलाने के लिए ही ये मजदूर अपना घर छोड़कर कमाने की तलाष में दूसरे राज्यों में आएं अब काम बंद है तो गांव तक पैसा भी नहीं पहुंचा पा रहे है। ऐसे में वहां पर उनके परिजन भूखे है और यदि दूसरे राज्य में इनकी कोई मदद कर भोजन दे भी रहा है तो कितने दिन अपने परिजनों की भूख की तड़प बर्दाष्त करेंगे। अपनी समस्याएं बताते हुए कई मजदूरों की आंखों में आंसू आ जाते है। किसी के बीवी बच्चे व बूढ़ी मां अकेली है तो किसी की पत्नी नहीं है बच्चे अकेले है। ऐसे मजदूर पर क्या गुजर रहीं होगी। सरकार इनके लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाती जिस तरह सरकारे कोटा में पढ़ रहे अपने छात्रों को वापस बुलाने के लिए बसें भेज रहीं है। उसी तरह क्या इन प्रवासी मजदूरों को भी उनके गांव वापस नहीं पहुंचाया जा सकता। या सरकार सिर्फ पैसे वालों की ही सुनती है और उनके ही बच्चे बच्चे है। आम मजदूर का परिवार नहीं उसके बच्चे नहीं होते क्या ? इस महामारी ने एक बात का अहसास करा दिया है कि गरीब होना किसी श्राप से कम नहीं है। बेचारा गरीब तिल - तिल मर रहा है, लेकिन उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। बेचारे मजदूर यदि दो पैसे कमाने दूसरे राज्य को आएं तो उन्हें सरकारे उनके राज्य नहीं भेज सकती लेकिन कोटा में पढ़ रहे देषभर के बच्चों को सरकारे अपने खर्च पर अपने वाहन से वापस लाने का प्रयत्न कर रहीं है। महाराष्ट्र की उद्धव सरकार ने एक घोषणा की थी जिसके तहत चीनी मिलों में काम करने वाले लाखों मजदूरों को टेस्ट कराने के बाद वापस उनके गांव भेजने का प्रबंध किया जाएंगा। हालांकि इन सभी का टेस्ट होने और रिपोर्ट आने में वक्त लगेगा लेकिन कम से कम कोई उपाय तो किया । इसी तरह अन्य सरकारों को भी अपने यहां रह रहे उन मजदूरों को उनके परिजनों के पास भेजने का प्रबंध करना चाहिए नही ंतो उन्हें और उनके परिवार के खाने का प्रबंध करना चाहिए। यहीं प्रवासी मजदूर देष की रीड़ है मजदूरों के बिना कोई काम संभव नहीं है महामारी के इस गंभीर हालात में सरकार को इनके लिए अधिक से अधिक सहयोग करना होगा ताकि इनकी जिंदगी भी बची रहे।

कोरोना से मृत डॉक्टर के षव पर पत्थरबाजी अमानवीय, असंवेदनषील ,षर्मनाक

देषभर में कोरोना की जंग में अग्रिम पंक्ति में खड़े हमारे कोरोना यौद्धाओं पर जिस तरह से अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। यह समाज के उस भद्दी तस्वीर को दिखा रहीं है जो पूरे देष कोष्षर्मषार कर रहीं है। अब तक डॉक्टरों पर तलवार, पत्थरों से हमले की घटनाएं तो हमारे सामने आई लेकिन अब उनके मृत षरीर पर भी इंसानियत के दुष्मन पत्थर बरसा रहे है। मंगलवार को चैन्नई के डॉक्टर की कोरोना के चलते मौत के बात जिस एंबुलेंस में अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा था । उस पर कई लोगों ने पत्थरों से हमला किया । इस हमले में डॉक्टर के परिजनों को बमुष्किल बचाया गया। आखिर लोगों को क्या हो गया है जो लोग अपनी जान पर खेलकर आपकों जिंदगी दे रहे है उन्हें भगवान की तरह पूजने उनकी रक्षा करने के बजाएं हम उन्हीं के भक्षक बनें हुए है। ऐसा करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाना चाहिए। वहीं सफाईकर्मी पर एक दबंग ने मंुह में सेनेटाइजर भर दिया दरअसल एक सफाईकर्मी गांव में सेनेटाइजेषन के लिए गया था ऐसे में कुछ बूंदे उस दबंग पर आ गिरी इससे वह इतना गुस्सा हुआ कि उसने सफाईकर्मी के मुंह मे सेनेटाइजर भर दिया जिससे उसकी मौत हो गई। महामारी के इस दौर में अपनी व अपने परिवार की परवाह किएं बिना देष सेवा में लगे इन यौद्धाओं के साथ समाज का ऐसा दुर्रव्यवहार किसी भी रूप में सहन करने योग्य नहीं है। यहीं नहीं सेवाएं देते हुए यह लोग खुद इस बीमारी की जद में आ रहे है । यहीं नहीं डॉक्टर पुलिसकर्मी अपनी जान भी गंवा चुके है। अब उनके परिवार का क्या होगा क्या कभी सोचा है ? नहीं सोचा तो सोचिए कि इन यौद्धाओं को नुकसान पहुंचाकर ये असमाजिक तत्व अपने विनाष को आमंत्रण दे रहे है। ऐसे लोगो ं के नहीं रहने से देष को कोई नुकसान नहीं होगा लेकिन इनकी वजह से यदि हमारे स्वास्थ्यकर्मी , पुलिसकर्मी व सफाईकर्मी को कुछ होता है तो देष को बहुत बड़ा नुकसान झेलना होगा । पुलिसकर्मियों व स्वास्थ्यकर्मियों की टीम के साथ जिस तरह का अमानवीय व असंवेदनषील व्यवहार हो रहा है वह किसी भी रूप में सहन करने योग्य नही ंहैै । इन सभी आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा देनी होगी ताकि आगे ऐसी हरकत करने वालों के हाथ उठने से पहले दस बार सोचे। इन जड़ बुद्धि के लोगों को कौन समझाएं कि यदि इन यौद्धाओं का सम्मान नहीं कर सकते तो कम से कम अपमान तो मत करों।

चावल की बंपर आवक से बनेगा सेनेटाइजर ना कि भूखे को भोजन

देश में चावल की फसल जरूरत का तीन गुना उपलब्ध हैयानि जितने चावल की आवश्यकता है उसका तीन गुना चावल खाद्य भंडार मेंरखा है। सरकार इस अत्यधिक चावल से सेनेटाइजर बनाने की योजना बना रहीं है। दरअसल कोविड - 19 के चलतेदेशभर में सेनेजाइजर की मांग बढ़ गई है। घर, बाहर, दफ्तर सभी जगह सेनेटाइजर की आवश्यकता है। जिसके चलते सेनेटाइजर की काला बाजारी भी शुरू हो गई थी । इसकी मांग को देखते हुए सरकार ने चावल से सेनेटाइजर बनाने को मंजूरी देने की बात कह रहीं है। हालांकि यहां बुनियादी सवाल यह हैकि जहां लाखों लोगों को भोजन नसीब नहीं हो रहा है ऐसे हालातों में चावल का इस तरह दुरूपयोग करना कहा तक उचित है। सोचने वाली बात है कि हमने ऐसी कई तस्वीरे देखी जिनमें लाखों गरीबों के पास भोजन नहीं पहुंच रहा है। किसी के पास एक वक्त का भोजन पहुंच रहा है तो किसी कोपेटभर खाना नहीं मिल पा रहा है। कई मजदूरों के परिवार वाले भूखमरी की कगार पर पहुंच गए है। वहीं कई जगहों पर ऐसे हालात है कि मजदूर सुबह छह बजे से भोजन की लाइन में लग रहे है ताकि 12 बजे भोजन खुलने पर उनका नंबर जल्दी आ जाएं। 10 से 12 घंटे के इंतजार के बाद उन्हें एक वक्त का भोजन नसीब हो रहा है ऐसे हालातों में इन लोगों तक दोनों वक्त का भोजन पहुंचाने के बजाएं सरकार सेनेटाइजर बनाने पर विचार कर रहीं है। शर्म की बात है कि जिस देश में गरीब के पास खाने को नहीं है महामारी के ऐसे हालातों में भी सरकार को उस वर्ग की चिंता है जो सेनेटाइजर का उपयोग करती है ना कि उन गरीबों की जिन्हें एक वक्त का भरपेट भोजन तक नहीं मिल रहा और किसी - किसी को तो कई - कई दिनों तक भूखा रहना पड़ रहा है। हमने मजदूरों के पलायन की भयावह तस्वीर देखी है जिनमें हजारों किलोमीटर की यात्रा के लिए यह बेसहारा मजदूर पैदल ही निकल पड़े थे। इनमें से कितने अपने गंतव्य तक पहुंचे होंगे। बिना खाएं पिएं आखिर बेचारे कैसे अपनी मंजिल तक आसानी से पहुंच सकते है। वहीं अभी भी कई राज्यों में प्रवासी मजदूर फंसे हुए है। बीच - बीच मेंवे सड़कों पर आकर अपनी उपस्थिति का अहसास करा रहे है। पेट की आग तो बूझाना पड़ेगा दूसरे राज्यों में जैसे - तैसे दिन कांट रहे इन मजूदरों के लिए भोजन की व्यवस्था कराने के बजाएं सरकार चावल का उपयोग सेनेटाइजर के लिए करने जा रहीं है। रिजर्व बैंक की प्रेस कांफ्रेस में कहा गया कि देश में अनाज के भंडार भरे हुए है अनाज पर्याप्त मात्रा में है तो उन मजदूरों को संतुष्ट किया गया कि आपको भूखा नहीं रखा जाएगा लेकिन इनमें से कई भूखे रह रहे है ऐसे में सरकार को इस बुनियादी सवाल पर विचार करना चाहिए ताकि चावल का उपयोग सेनेटाइजर की बजाएं भूखों को भोजन देने में किया जाएं।

क्या और तबाही लाएगा कोविड -19 ?

हाल ही में आएं विष्व स्वास्थ्य संगठन के बयान ने दुनिया को और डरा दिया है , जिसमें कोरोना के कहर के बढ़ने के आसार को लेकर चेताया गया है। दुनिया पहले से ही कोरोना से जंग लड़ रहीं है। अभी तक इस महामारी का कोई भी पुख्ता इलाज सामने नहीं आया है। भगवान भरोसे नई- नई विधाओं पर काम किया जा रहा है। दिल्ली में प्लाज्मा थैरेपी से कुछ बात बनती दिख रहीं हैै । हाल ही में एक मरीज को इससे फायदा हुआ जिसके बाद उसे वेंटिलेटर से हटा दिया गया है। वहीं दूसरी ओर राजस्थान में रैपिड टेस्ट किट के परिणाम गलत आने के बाद टेस्टिंग के लिए इनका प्रयोग फिलहाल रोक दिया गया है। हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी की गई सूचना में यह कहा गया कि अब जो कोविड के केस सामने आ रहे है उनमें किसी प्रकार के लक्षण पीडि़त में उभर कर सामने नहीं आ पा रहे है। इस तरह के करीब 80 प्रतिषत मामले सामने आएं जिनमें पीडि़त को कोई परेषानी नहीं थी बावजूद इसके वह कोविड पॉजिटिव पाया गया। इस तरह के आंकड़े और डर पैदा कर रहे है आखिर इस वायरस की हद क्या है। जब कोरोना वायरस का प्रकोप षुरू हुआ था उस समय ऐसी बाते भी कहीं गई थी कि तापमान बढ़ने पर इसका असर षायद कम हो सकता है हालांकि इस बारे में कोई पुख्ता सबूत नहीं थे और ना ही है। लेकिन जिस तरह तापमान थोड़ा बढ़ा है इसके बाद इस वायरस के लक्षण भी बदल रहे है यानि अब यह साइलेंट होकर वार कर रहा है। सबकुछ पता होते हुए भी जब हम इस वायरस को पकड़ नहीं पा रहे थे तो अब जब यह साइलंेट वार करेगा तो सोचिए क्या हालात बनेंगे । वहीं विष्व स्वास्थ्य संगठन ने हालिया बयान भी डराने की ओर ही इषारा कर रहे है। तमाम परेषानियों से जूझते हुए संक्रमितों के बीच रह रहे हमारे स्वास्थ्यकर्मियों, सफाईकर्मियों , पुलिसकर्मियों के लिए यह और परेषान करने वाली स्थिति है। परेषानियों का सिलसिला थमने के बजाएं षायद बढ़ने की ओर इषारा कर रहा है। इस वायरस के चलते कहीं न कहीं पानी के उपयोग की अधिकता बढ़ी है। बार - बार हाथ धोना वहीं अब डर के चलते हम बाजार से लाई गई सब्जियों को भी पहले से अधिक बार धोते है। हालांकि स्वास्थ्य के लिहाज से हाथों की सफाई पर जोर देना अच्छा ही है। लेकिन गर्मियों में जलसंकट की समस्या हमारे देष में नई नहीं है। देषभर से गर्मियों के दौरान आने वाली जलसंकट की कई कहानियां हमने देखी और सुनी है। जिसमें कई - कई कोस चलकर महिलाएं पीने के पानी की जुगत करती देखती है। पानी के लिए जंग जैसे हालात भी बनते हुए हमने देखे है। जमीन में पानी की कमी होने से बोर , हेंडपंप आदि सूखने लगते है। उन हालातों में जब कई लोगों को पीने का पानी तक नसीब नहीं होता ऐसे हालातों में सोचिए ! कि क्या कोरोना से लड़ाई और मुष्किल नहीं हो जाएंगी। इस वक्त ऐसा लग रहा है मानो भगवान दुनिया की परीक्षा पर परीक्षा लिए जा रहीं है, लेकिन परीक्षा की इस घड़ी में हम सभी को अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभानी होगी । यदि हम अपने कर्त्तव्य पथ से नहीं डिगे और अपने कर्म ईमानदारी से करते रहे तो परीक्षा की यह घड़ी भी निकल जाएंगी और ईमानदारों पर प्रकृति भी मेहरबान होगी । विष्वास है। हम इस जंग से एकसाथ लड़कर जरूर जीतेंगे ।

Friday, April 3, 2020

डाॅक्टरों से बदसलूकी - '’ष’र्मनाक...... षर्मनाक ....षर्मनाक ....

कोरोना के कहर से दुनिया कराह रहीं है। इस समय दुनियाभर के लिए यदि कोई आषा की किरणें हैं तो वह डाॅक्टर और पैरामेडिकल स्टाॅफ ही है। दुनिया को उनका षुक्रगुजार होना चाहिए कि अपनी जान व अपने परिवार की फिक्र किए बिना यह लोग निःस्वार्थ भाव से कोरोना पीड़ितों की सेवा में जुटे हुए है। इनकी जितनी प्रषंसा की जाएं कम है ऐसे मुष्किल वक्त में हमें भी अपनी जिम्मेदारियों से भागना नहीं चाहिए। इस समय देष में 2 हजार से अधिक मरीज कोरोना पाॅजिटिव है। देष के सभी राज्यों में कोरोना से मरीजों के संक्रमित होने का सिलसिला जारी है। सभी स्थानों पर सरकारी अस्पतालों में डाॅक्टर संसाधनों के अभाव से जूझते हुए अपनी परवाह किए बिना सेवाएं दे रहे है। ऐसे माहौल में यदि उनके उपर पथराव करने व धूकने जैसी अमानवीय घटनाएं देखने को मिले तो खून खौल उठता है उन लोगों के खिलाफ जो इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहे है। मध्यप्रदेष के सफाई में नंबर वन षहर इंदौर से डाॅक्टरों के खिलाफ दो षर्मनाक घटनाएं सामने आई है। जिनमें एक घटना टाट पट्टी बाखल इलाके की है जहां के अब्दुल हामीद की कोरोना से मौत हो जाने के बाद स्वास्थ्यकर्मी उनके परिजनों को ले जाने और उस क्षेत्र के लोगों की जांच करने आई थी । इस दौरान लोगों ने स्वास्थ्य कर्मियों पर पथराव कर दिया कई लोगों ने मिलकर उन पर हमला बोल दिया । एक स्वास्थ्यकर्मी के मुताबिक वे बमुष्किल वहां से बचकर निकल पाएं नही तो ये लोग इनकी जान ले लेते। वहीं दूसरी घटना इंदौर के ही रानीपुरा की है जहां स्वास्थ्यकर्मियों पर धूकने की घटना हुई थी। जो लोग आपको जिंदगी दे सकते है उनकी जान से यदि इस तरह से खिलवाड़ करना किसी भी रूप में उचित नहीं है। हालांकि राज्य सरकार ने इन दोनों मामलों में आरोपियों पर कार्यवाही करते हुए पहली घटना में आरोपियों पर रासुका और दूसरी घटना में संबंधितों पर एफआईआर दर्ज की गई है। वहीं यूपी के गाजियाबाद में तब्लीगी जमात के कोरोना पाॅजिटिव छह मरीजों ने नर्सो के साथ गलत व्यवहार किया। जानकारी के मुताबिक यहां इन मरीजों ने नर्सो के सामने कपड़े उतारे और अष्लील हरकते की। अगर इस तरह से यह मरीज उन लोगों के साथ बर्ताव करेंगे जो आपको जिंदगी दे रहे है तो यह कतई सहन नहीं किया जा सकता। आखिर ये स्वास्थ्य कर्मी दिन रात किसकी सेवा में लगे हुए है ऐसे में इनके साथ इस तरह का अमानवीय व्यवहार मानवीय गुण को नहीं दर्षाता । इस समय हर जिम्मेदार नागरिक का यहीं फर्ज बनता है कि डाॅक्टरों व स्टाॅफ का भरपूर सहयोग किया जाएं । एक तरफ कोरोना का कहर वहीं दूसरी ओर मरीजों के जानवर नुमा व्यवहार के बीच स्वास्थ्यकर्मियों की सेवाएं अनवरत जारी हैै । संसाधनों के अभाव में सेवाएं देे रहे डाॅक्टर कोरोना पाॅजिटिव मरीजों के बीच में दिन रात रह रहे हमारे डाॅक्टरों के पास पर्याप्त संसाधन भी नहीं है। 30 मार्च को टाइम्स आॅफ इंडिया की खबर के मुताबिक कोलकाता में डाॅक्टरों को रेन कोट दे दिए गए। वहीं कई जगहों पर (पीपीई प्लास्टर प्रोटेक्षन ) की गुणवत्ता कहीं से भी संतोषजनक नहीं है। देष भर में करीब 3.5 लाख पीपीई है अब देषभर से इसकी कमी का षोर सामने आने लगा है। मध्यप्रदेष सरकार भी संसाधनों को जुटाने में प्रयासरत है लेकिन यहां भी संसाधनों की कमी साफ जाहिर है। प्रदेष भर में जहां 900 वेंटीलेटर है वहीं 7.5 करोड़ की आबादी में तमाम सरकारी व गैर सरकारी अस्पतालों को मिलाकर सिर्फ 1200 बस्तर है। करीब 16709 पीपीई है वहीं एन- 95 मास्क 74,380 है जबकि थ्री लेयर मास्क 5 लाख के आसपास है। यानि डाॅक्टर व पैरामेडिकल स्टाॅफ अपनी जान पर खेलकर लोगों की जान बचाने में जुटे हुए है। तमाम परेषानियों से जुझते हुए वे अपनी सेवाएं दे रहे है। यदि डाॅक्टरों की सेफ्टी नहीं होगी तो उनकी जान पर खतरा मंडराता रहेगा। इसी का परिणाम है कि देष में करीब 54 डाॅक्टर कोरोना पाॅजिटिव पाएं गए है। वहीं अकेले इटली में 50 से अधिक डाॅक्टरों की मौत हो चुकी है और 7 हजार से अधिक हेल्थ वर्कर संक्रमित है। इस समय हमें अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए डाॅक्टरों की मदद करना चाहिए। तब्लीगी जमात की जहालत निजामुद्दीन के मरकस में तब्लीगी जमात के लोगों ने जो कांड किया उसका खामियाजा पूरा देष भुगत रहा है। अभी भी ये लोग देष के अलग -अलग हिस्सों में जाकर छुपे हुए है । स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी प्रेस काॅफ्रेंस में कहा गया कि तब्लीगी जमात से जुड़े लोगों के 48 राज्यों में होने की संभावना है । जमात के करीब 647 लोग कोरोना पाॅजिटिव पाएं गए है। इस मुष्किल घड़ी में तब्लीगी जमात ने जो कारनामा किया है उसका अंजाम पूरा देष भुगत रहा है विडंबना यह है कि इनके लोग इलाज में स्वास्थ्य कर्मियों की मदद भी नहीं कर रहे है। वहीं देष के अलग - अलग हिस्सों में अभी भी ये लोग छुपे हुए है। तमाम राज्यों के प्रषासन स्तर पर उन्हें खोजने का प्रयास जारी है । ऐसे में साफ जाहिर है कि लोग जानबूझकर खुद को छुपाकर दूसरों को भी संक्रमित करना चाहते है। ऐसा करके कहीं न कहीं यह देष द्रोही कहलाने का काम कर रहे हैै । यदि ये लोग सच्चे देष भक्त होते तो छुपने के बजाए खुद बाहर आकर अपना टेस्ट करवाते और इस मुष्किल घड़ी में डाॅक्टरों की मदद करते । पुलिसकर्मियों को बरगलाने के बजाएं खुद अपनी पहचान बताते और जो अन्य लोग मौजूद थे उनकी भी जानकारी देते । इन लोगों को पकड़ने के बाद इन पर आपराधिक केस दर्ज करना चाहिए इन्हें आसानी से नहीं छोड़ना चाहिए ताकि इन जैसों को कुछ तो सबक मिल सकें। अन्य गंभीर बीमारियों के मरीजों की आफत कोरोना से चल रहीं इस जंग के बीच वे मरीज आफत में आ गए है जो कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से लड़ रहे है। कैंसर के इलाज के दौरान डाॅक्टर मरीज को लगातार आने की सलाह देते है इलाज को रोकना कैंसर के मरीज के लिए घातक साबित हो सकता है। ऐसे में जब बस , ट्रेन व प्लेन सभी आवागमन के साधन बंद है तो ऐसे में मरीजों का बाहर से आना संभव नहीं है। ऐसे में कैंसर के मरीज जहां है वहीं अपना इलाज करा सकते है। हालांकि आपातकालीन सेवाएं जारी है लेकिन ऐसे में कैंसर के अन्य मरीजों के लिए परेषानियां बढ़ती जा रहीं हैै क्योंकि उनकी कीमोथैरेपी में गैप करना रोग को बढ़ाने जैसा ही है। लेकिन कैंसर के मरीज का कोरोना के संपर्क में आना उनके लिए और घातक सिद्ध हो सकता है। ऐसे में उन मरीजों के डाॅक्टरों का फर्ज है कि उन्हें फोन के जरिए ही जितनी हो सके जानकारी दी जाएं और इस समय वे किस प्रकार अपने इलाज को आगे बढ़ाएं इसकी भी जानकारी देना चाहिए। हालांकि प्रत्येक कीमोथैरेपी से पहले मरीज के कई ब्लड टेस्ट होते है लेकिन इस माहौल में जितना संभव हो डाॅक्टरों को अपने इन मरीजों का भी ध्यान रखना होगा। ताली और दिए के बजाए संसाधनों दरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के कर्मवीरों के लिए पहले ताली और अब दिया जलाकर हौसला अफजाई करने को कहा है। इसके बजाएं इस समय इन कर्मवीरों को संसाधनों की अधिक दरकार है। अपनी जान को दांव पर लगाकर ये दिन - रात कोरोना मरीजों को ठीक करने में जुटे हुए है। इस समय उनका हम रोज भी सम्मान में कुछ न कुछ करें तो कम होगा बजाएं इसके इस वक्त उन्हें जिन संसाधनों की दरकार है। सरकार से निवेदन है कि उस दिषा में तीव्र गति से काम करने की दरकार हैै ताकि डाॅक्टर्स व पैरामेडिकल स्टाफ अपनी पूरी सुरक्षा के साथ इन मरीजों के इलाज में जुटे । असुरक्षा के माहौल में डाॅक्टर्स खुद संक्रमित होते जा रहे है ऐसे में कहीं यदि अस्पतालों को डाॅक्टरों के लिए आइसोलेट करना पड़ जाएं तो आम मरीजों का इलाज कहा होगा । इस समस्या से बचने के लिए जरूरी है कि जल्द से जल्द डाॅक्टरों को अच्छी गुणवत्ता के सुरक्षा कवज मुहैया कराएं जाएं ताकि वे सुरिक्षत होकर कोरोना के मरीजों को सुरक्षित रखने का काम करें।