Wednesday, May 20, 2020

महामारी में सरकार की निष्ठुरता जग जाहिर पूर्व नियोजन के बिना लगाया लाॅकडाॅउन

औरंगाबाद में मालगाड़ी से कटे 16 प्रवासी मजदूर, और्रया सड़क हादसे में 24 मजदूरों की दर्दनाक मौत हादसे थमें नहीं है और ना ही मजदूरों के पैर थमे है। अभी भी देषभर के अलग- अलग हिस्सों से मजदूरों के सड़कों पर चलने की तस्वीरें दिखाई दे रहीं है। मजबूर मजदूरों की इस अंतहीन व्यथा के लिए जिम्मेदार केंद्र सरकार व तमाम राज्य सरकारें है। आखिर इन मजदूरों की गिनती सरकार के लिए नागरिकों में है भी या नहीं । जिस तरह की दर्दनाक, रूला देने वाली मजदूरों की दांस्ताने दुनिया के सामने है। विभिन्न सामाजिक संस्थाएं व समाजसेवी जन अपनी ओर से इन मजदूरों के खाने- पीने का इंतजाम कर रहे है। लेकिन सरकारे निष्ठुरता की हदे पार कर रहीं है। प्रषासन मजदूरों के षवों और घायलों को एक साथ भेजने जैसी असंवेदनहिनता का दर्षन करा रहा है। मजदूरों की हादसों में मृत्यु होने के बाद चैतरफा विरोध होने के बाद सरकारे अपनी कुर्सी बचाने के लिए झूठी संवेदनषीलता का प्रदर्षन कर मजदूरों को और परेषान कर रहीं है। उन्हें राज्यों की बाॅर्डर पर रोका जा रहा है। कुछ बसें व ट्रेन चलाकर उन्हें घरो तक पहुंचाने की कमजोर कोषिषेकी जा रहींहै । पैदल चलते मजदूर महामारी की पहचान कोविड - 19 जैसी महामारी को लेकर सरकार की योजनाएं पूर्णतया असफल रहीं है। नोटबंदी की तरह अचानक देषभर में लाॅकडाउन घोषित कर दिया गया। उस समय सरकार ने इन आठ करोड़ प्रवासी मजदूरों के बारे में एक बार भी नहीं सोचा। तमाम जगद्दोजहत व परेषानियां झेलते हुए एक - दो नहीं हजारों किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर जाते मजदूर इस संकट की सबसे दर्दनाक तस्वीर है। क्या सरकरों को इनकी कोई जानकारी नहीं थी ? क्या सरकार को नहीं पता था कि ये लोग दिहाड़ी मजदूरी करते है? प्रधानमंत्री ने कहा था कि घर पर रहिए, घर पर रहिए और सिर्फ घर पर ही रहिए। तब प्रधानमंत्री जी नहीं जानते थे कि देषभर में प्रवासी मजदूर किस तरह से एक घर में किराए से कितनी मुष्किल में रहते है। तो सिर्फ घर पर किस प्रकार रह सकते है ? क्या सरकार ने तमाम मकानमालिकों से इस बात के लिए लिखित दस्तावेज लिए थे कि वे इस मुष्किल घड़ी में अपने किराएदारों से किराया नहीं मांगेंगे या मजदूरों के लिए पहले से रहने के अन्य व्यवस्थित इंतजाम किए थे ? कंेद्र व राज्य सरकारों ने जरूरतमंदों के लिए कुछ नहीं किया । बिना तैयारी के बस लाॅकडाॅउन घोषित कर दिया। जबकि यदि मार्च के षुरूआती दौर में ही इन तमाम मजदूरों को व्यवस्थित ढंग से ट्रेनों व बसों के माध्यम से अपने - अपने घर पहुंचाया जा सकता था। सरकार ने मजदूरों के प्रति घोर लापरवाही व गैर जिम्मेदारी का प्रदर्षन किया जिसका खामियाजा मजदूरों के मासूम बच्चों, गर्भवती महिलाओं व स्वयं मजदूरों को भोगना पड़ रहा है। महामारी से तो नहीं लेकिन मजदूर भुखमरी व हादसों के षिकार अधिक हो रहे है। लाषों के लिए ट्रेनें चलाई लाॅकडाॅउन लगाने के बाद जब षुरूआत में मजदूर पैदल चलते दिखे और सोषल मीडिया सहित कुछ मीडिया संस्थानों ने इनके संबंध में बात करना षुरू किया । जैसे - जैसे मजदूरों की व्यथा उजागर हुई तो कुछ जगहों से बसों की सुविधा षुरू की गई लेकिन बाद में उसे बंद कर दिया । लाॅकडाॅउन के चरण बढ़ते चले गए और मजबूर मजदूर वापस पैदल चलने को मजबूर हो गए। फिर वे हादसों का षिकार होने लगे बाद में प्रषासन ने उनके षवों को ट्रेन से पहुंचाने का काम किया । अगर पहले ही उनके लिए अधिक से अधिक वाहनों का प्रबंध कर दिया जाता तो इनती भयावह स्थितियों का षिकार होने से मजदूर बच जाता। अभी भी सरकारे मजदूरों की मदद के लिहाज से नहीं अपने कुप्रषासन के चेहरे को छिपाने के लिए मजदूरों को जगह - जगह रोककर उनके लिए बसों के प्रबंधन करने की बाते कर रहीं है। मंगलवार को भी बांद्रा में मजदूरों की भारी भीड़ उमड़ आई , गाजीपूर बाॅर्डर पर भी भारी संख्या में प्रवासी मजदूर इकट्ठा हुए। यानि सरकार के वर्तमान प्रयास भी मजदूरों की संख्या के हिसाब से नाकाफी साबित हुए है। बसों पर राजनीति बेबस मजदूर की आंखों में बस किसी तरह अपने गांव पहुंच जाने की बेबसी है। मजबूर मजदूरों पर हो रहीं खोखली राजनीति से बेखबर मजदूर अपने गंतव्य तक पहुंचने की नाकाम कोषिषे कर रहा है। मजदूरो को तुरंत मदद करने के बजाएं फिलहाल बसों को लेकर राजनीति करने में नेतागण व्यस्त है। पिछले 55 दिनों से प्रवासी मजदूरों की पैदल चलने व छुपते छुपाते किसी तरह अपने घर पहुंचने और हादसों के षिकार होेने की तस्वीरे सामने आने के बाद कांग्रेस ने प्रवासी मजदूरों के लिए एक हजार बसों का इंतजाम करने की इजाजत यूपी सरकार से पत्र के माध्यम से मांगी। प्रियंका गांधी ने यूपी सरकार को इस बाबत पत्र लिखा इसके बाद भाजपा ने सहमति देकर पत्राचार की राजनीति की षुरूआत कर दी । सहमति देने के बाद बसों का फिटनेस, लाइसेंस जैसे कागजी बातों के जरिए अडंगा लगाना षुरू कर दिया। कागजी राजनीति जारी है और बसों के पहिए थमे हुए है। बेवजह खींजती दिखीं वित्त मंत्री बीस लाख हजार करोड़ के पैकेज का विस्तृत विवरण देने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को लगातार चार दिनों तक प्रेस कांफ्रेंस करनी पड़ी। अंतिम प्रेस कांफ्रेंस के दिन राहुल गांधी पर पूछे गए एक सवाल पर उन्हें इतना गुस्सा आ गया जिसने सरकार की नाकामयाबियों के नकाब को उतार दिया। खींजते हुए उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने सड़क किनारे बैठे मजदूरों से बात कर उनका समय खराब कर दिया। इससे तो अच्छा होता कि वे उनका सामान लेकर उनके साथ पैदल चलते। उनके लिए बसों का इंतजाम करते । कह तो इस तरह रहीं थी जैसे ना जाने कितने भाजपाई अभी तक मजदूरों का सामान उठाने में मदद कर चुके हो । अब जब प्रियंका गांधी ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया तो प़त्राचार की राजनीति षुरू कर दी। राहुल गांधी के प्रष्न पर निर्मला सीतारमण की खींज ने सबकुछ उजागर कर दिया है। साफ है कि प्रवासी मजदूरों की वास्तविक तस्वीर हर आम आदमी का दर्द बनती जा रहीं है और उनकी तरफ सरकार की लापरवाही , कुव्यवस्था उजागर हो चुकी है।

Wednesday, May 13, 2020

मजबूर मजदूर पर चुप्पी साधे रहे प्रधानमंत्री , पैदल अपने गांव जा रहे मजदूर आत्मनिर्भरता की मिसाल

महामारी के बाद मजबूर हुए मजदूरों की पीड़ादायक अंतहीन समस्याओं को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने अभिभाषण में कुछ नहीं कहा। लाॅकडाउन के बाद देषभर में मजदूरों का पलायन जारी है । पलायन के इस दौर में मजदूर की पीड़ा के झकझौर देने वाली तस्वीरे रोज न्यूज चैनलों व अखबारों के माध्यम से देख रहे है। औरंगाबाद हादसे में जान गंवाने वाले मध्यप्रदेष के 16 मजदूरों को देष भूला नहीं है। अभी भी रोज कोई न कोई मजदूर भूख, गर्मी व दुर्घटना में दम तोड़ रहा है। 40 - 45 डिग्री तापमान में गर्भवती महिलाएं, मासूम बच्चे हजारों किलोमीटर की यात्राएं कर रहे है। भरी गर्मी में भी कई मजदूर पैदल चल रहे है तो कई अपना सामान बेचकर , कहीं से पैसा उधार लेकर किराए पर गाड़ी करके अपने गंतव्य की ओर निकल पड़े है। हालात से मजबूर इन मजदूरों पर चैतरफा मार पड़ रहीं है। हालात के मारे मुंबई के भिवंडीे से लखनउ के लिए निकले मजदूरों ने एक टैंपों किया जिसमें करीब 19 मजदूर फंसकर जैसे तैसे बैठे। कुछ दूर आगे चलकर मुंबई में ही हाईवे पर जा रहीं तेज रफतार कार ने टैंपों को पीछे से टक्कर मार दी जिसमें ड्राइवर और उसके परिवार की मौत हो गई। इसी तरह दिल्ली से लखनउ जाने के लिए साइकिल पर निकले मजदूर को एक कार ने पीछे से टक्कर मार दी उसकी मौके पर ही मौत हो गई। इसी तरह फतहपुर से निकले एक मजदूर की रायबरेली में मौत हो गई। वहीं कुछ ऐसे भी है जिनके प्राण अपने गृह ग्राम में जाकर निकल गए। सोचिए क्या बीत रहीं होगी इन मजदूरों के परिवारों पर जानवरों की तरह ट्रकों में भरकर , तमाम परेषानियों से जूझते हुए , बचा कुचा सबकुछ बेचकर सिर्फ अपने गांव की ओर निकले मजदूरों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक षब्द तक नहीं बोला ? ठीक है आपने 20 हजार करोड़ के आर्थिक पैकेज की धोषणा कर दी लेकिन इसका फायदा आज सड़कों पर चल रहे मजदूरों को तो नहीं मिलेगी और ना ही उन्हें इस घोषणा के बारे में कुछ पता होगा । फिलहाल फौरी तौर पर उनके लिए प्रधानमंत्री क्या कर रहे है इसके बारे में कुछ भी उन्होंने नहीं कहा। हर तरफ से मार खा रहे मजदूरों को लेकर आपकी वर्तमान में क्या योजना है इसके बारे में आपने अपनी नीति स्पष्ट नहीं की। प्रधानमंत्री ने अपने अभिभाषण में कहा कि अब योजनाओं का पूरा लाभ लाभार्थियों तक पहुंचता है लेकिन धरातल पर ऐसा होता तो नहीं दिख रहा । जिस वक्त लाॅकडाउन की षुरूआत हुई थी उस वक्त सरकार ने और रिजर्व बैंक ने कहा था कि देष में खाद्यान की कोई कमी नहीं है। लेकिन सड़कों पर हजारों किलोमीटर पैदल चलते मजदूरों को देखकर तो ऐसा नहीं लगता कि उन्हें राषन मुहैया कराया गया होगा? खाने - पीने और सुरक्षा की व्यवस्था होती तो कौन मजदूर अपनी जान पर खेलकर इतना लंबे सफर के लिए इस तरह निकल पड़ते। यहीं नहीं गर्भवती महिलाएं जिनका 8 वां 9 वां महिना चल रहा है। चिलचिलाती धूप में बिना पानी , खाने के लिए बस लगातार चली जा रहीं है। रायपुर से ऐसी तस्वीर सामने आई जिसमें महिला ने सड़क पर बच्चे को जन्म दिया दो घंटे के विश्राम के बाद मजदूरों का दल अपने गंतव्य के लिए फिर रवाना हो गया । नवजात बच्चे को लेकर मां फिर हजारों मील की यात्रा के लिए पैदल चल पड़ी। 20 हजार करोड़ के आर्थि क पैकेज का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री को अर्थव्यवस्था की नींव मजदूरों की याद नहीं आई। सूरत में हजारों की तादात में मजदूर लगभग रोज विरोध के लिए सड़कों पर उतर रहे है। सोमवार को तो तमाम मजदूर हाथ में घर पहुंचाने से जुड़े बैनर लेकर विरोध प्रदर्षन करते नजर आएं। लेकिन राज्य सरकारों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रहीं है। कई किलोमीटर की यात्रा तय कर मप्र पहुंचे मजदूरों को महाराष्ट्र और मप्र की बाॅर्डर पर रोक दिया गया। चिलचिलाती धूप में मजदूर परेषान होते रहे। आखिर सारे जुल्म मजदूरों पर ही क्यों ढाएं जा रहे है। कालाबाजारी करने वाले भी मजदूरों से पैसा वसूल रहे है दो हजार की साइकिल 4 हजार में दे रहें है। अपनी गाड़ी में बैठाने के लिए मनमाना किराया वसूल कर रहे है। अपना सबकुछ लूटा - पिटा कर जैसे - तैसे घर पहुंच रहे मजदूरों को भी आसानी से गांव में घुसने नहीं दिया जा रहा है। कई मजदूरों को उनके गांव के बाहर ही रोक दिया गया है । छोटे बच्चे है उनके लिए दूध पानी तक का प्रबंध नहीं हएो पा रहा है। लाखों मजदूरों की अंतहीन पीड़ा दायक कहानियां चारों तरफ है जहां देखेंगे उनकी ऐसी समस्याएं नजर आएंगी आपकी नजरें षर्म से झुक जाएंगी। इसलिए यदि किसी काम से घर से निकले हाथ में एक थैले में पानी , कुछ खाने का सामान , चप्पल साथ लेकर निकले यदि कोई मजदूर दिखे तो उसकी इतनी मदद तो कर सकें। चल - चल कर उनकी चप्पलें घिस गई है ऐसी तस्वीरें आई थी जिसमें मजदूर ने प्लास्टिक की बाटल को पैर के नीचे रखकर सफर किया था। मजदूरों की इन भयावह , पीड़ादायक समस्याओं का मजदूर तुरंत समाधान चाहता है और प्रधानमंत्री योजना बनाकर उन्हें लाभ देने पर विचार कर रहे है क्योंकि मजदूर मजबूर है। सरकार उन्हें अपनी उंगलियों पर नचाएंगी और बेचारा मजदूर क्या करेगा।

Monday, May 4, 2020

अतुलनीय, पूजनीय , प्रेरणास्त्रोत है प्रकृति

कोरोना के कहर के चलते दुनिया का बड़ा हिस्सा लाॅकडाॅउन है। जिसके चलते विषाणु उगलने वाले कारखाने बंद है। प्रकृति को हानि पहुंचाने और प्रकृति की गतिविधियों में हस्तक्षेप करने वाली इंसानी गतिविधियों पर रोक लगी हुई है। दुनिया के अलग - अलग हिस्सों में अलग - अलग अवधियों के लाॅकडाॅउन के चलते दुनियाभर में वायु , ध्वनि व जल प्रदूषण में कमी आई है। इसका प्रमाण स्वयं प्रकृति दे रहीं है। देष के सबसे प्रदूषित रहने वाले षहरो ंमें प्रदूषण का मानक स्तर संतोषजनक है। दुनिया भर की बड़ी नदियों का पानी स्वतः स्वच्छ हो गया है। नदियों व समुद्र के अंदर रहने वाले जीवों की दुनियां भी प्रसिद्ध फोटोग्राफर के कैमरे में कैद हो रहीं है। वहां की अदभुद दुनिया अब उपर से भी साफ नजर आ रहीं है । देष की प्रसिद्ध महानदी गंगा को साफ करने के लिए अब तक तमाम सरकारें करोड़ों रूपए बहा चुकी है लेकिन बावजूद इसके गंगा स्वच्छ व निरमल नहीं हो पाई। जो करोड़ों रूपए नहीं कर सकें वह लाॅकडाॅउन ने कर दिया यानि इसका सीधा सा मतलब है कि इंसानी गतिविधियों पर रोक ने प्रकृति को स्वयं में रहने का समय दिया और प्रकृति की षक्ति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनियाभर में बड़ी नदियांे ने स्वयं को साफ कर लिया है। वायु प्रदूषण कम होने से आसमान साफ व स्वच्छ नजर आने लगा है। सिर्फ नदियां ही नहीं पषु, पक्षियांे और अनेक जीवों की हलचल भी तेज हो गई है। उन्हें भी अब आसमान अपना नजर आ रहा है। दुनिया में उनका भी हिस्सा है अब ये वे भी महसूस कर रहे है। मुंबई जैसे अतिव्यस्त षहर में पक्षियों की चहलकदमी के कई वीडियों वायरल हुए जिनमें उनकी खुषी साफ नजर आ रहीं है। यहीं नहीं हानिकारक धुएं की वायुमंडल में कमी होने के बाद ओजोन परत में दिखाई देने वाला छेद लुप्त हो गया है। ओजोन परत सूर्य से आने वाली पराबैगनी किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकती है। यह किरणे प्रकृति सहित मानव जीवन के लिए घातक होती है। वैज्ञानिकों के लिए यह बड़े षोध विषय था कि अेाजोन परत को कैसे रिकवर किया जाएं । सोचिए इतनी वृहद समस्या हानिकारक धुंआ नहीं होने से स्वतः हल हो गई। प्रकृति में आ रहे इस सकारात्मक परिवर्तन पर विचार करना आवष्यक है। स्वयं पर आई विपत्ति को प्रकृति ने स्वतः हल कर लिया इसी से आप प्रकृति के षक्ति का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसलिए आवष्यक है कि हम प्रकृति पर बिना वजह अत्याचार करना बंद करें । प्रकृति निःस्वार्थ भाव से मनुष्य को अपना सर्वस्व अर्पण कर देती है। तो हमारा भी तो प्रकृति के प्रति कुछ कत्र्तव्य बनता है। हमें संभलना होगा प्रकृति पर व्यर्थ छिनने के बजाएं जितना आवष्यक हो उतना लें और उतना उसे देने का कत्र्तव्य भी निभाएं।

गरीबी सबसे बड़ा दुर्भाग्य

कोरोना काल में सबसे अधिक मार गरीब तबके पर पड़ रहीं है। चैतरफा परेषानियों से घिरे इस तबके के उद्धार के लिए कोई प्रयास अब तक सफलतापूर्वक नहीं किए गए है। अपने काम में व्यस्त रहे मजदूरों के सिर पर उस वक्त असीम विपत्ति (असीम इसलिए क्योंकि विपत्तियों से तो उनका जन्म से ही नाता रहता है ) का पहाड़ टूट पड़ा जब जनता कफ्र्यू के बाद अचानक लाॅकडाॅउन लगा दिया गया। पहले से ही अव्यवस्थित जीवन जीने को मजबूर इस तबके पर कोरोना की मार अधिक जोर से पड़ी है। कुछ पैसा कमाने की आस इन्हे दूसरे राज्यों की ओर पलायन को मजबूर करती है। जिससे उन राज्यों में भी इनका जीवन छोटे से कमरे या झोपड़ पट्टियों में बीतता है। किसी का पूरा परिवार उनके साथ होता है तो कोई अकेला ही काम की तलाष में बाहर आ जाता है। ताकि परिवार के पास पैसे भेजकर कुछ मदद कर सकें। रोज कमाकर जो रोटी खाता है। उसे यह पता चले कि अब कल से वह सभी काम बंद कर दिए जा रहे है तो उनके अंदर चल रहे अंतरद्वंद को कोई नहीं रोक सकता । सोचिए! जो लोग किराए से रह रहे हो , सड़कों पर आश्रय लिए हो जिनके पास कल के खाने तक का इंतजाम नहीं हो ऐसे में एक लंबे समय तक काम बंदी का फैसला सनने के बाद उनके अंदर कितनी उथल - पुथल मची होगी । जाहिर है इन हालातों में वे अपने जन्म स्थान अपने गांव लौट जाने को आतुर होंगे ही लेकिन दूर - दूर तक कोई साधन नजर नहीं आ रहे हो। ऐसे में यदि किसी तरह सरकार उन्हें आष्वस्त कर भी दे तो कितने दिनों तक उन्हें रोका जा सकता है। लाॅकडाॅउन को एक माह से अधिक हो चुका है लेकिन अभी भी प्रवासी मजदूरों का पलायन जारी है। इससे साफ होता है कि सरकार अपनी सेवाओं से उन्हें संतुष्ट नहीं कर पा रही ंहै। सरकार ही नहीं विभिन्न स्वयं सेवी संस्थाएं भी जरूरतमंदों तक भोजन पहुंचाने के काम मंे जुटी हुई है। बावजूद इसके सभी जरूरतमंदों तक मदद नहीं पहुंच पा रहीं है। जिनके परिवार उनके साथ है उनका तो समय कट जाएगा लेकिन जिनका परिवार साथ नहीं उनकी स्थिति बहुत खराब है। इसलिए वे पैदल या साइकिल से कई - कई किलोमीटर की यात्राएं करने को मजबूर हो गए। पैदल जाते हुए जिन लोगों की जान गई उनके परिवार की जवाबदारी कौन लेगा और यदि सरकार ऐलान कर भी दे तो क्या वाकई उन तक सभी जरूरते समय रहते पहुंच पाएंगी। अभी भी सरकार ने जरूरतमंदों के लिए अतिरिक्त अनाज के वितरण की व्यवस्था की थी लेकिन वह सुविधा राषन कार्ड धारकों तक ही पहुंची । अन्य जरूरतमंद इससे वंचित ही रहे इसीलिए तो उन्होंने हजारों किलोमीटर की दूरी बिना साधन के तय करने में भी परहेज नहीं किया और फिर वे करते भी क्या ? आज जिस तरह सरकारें कोटा में पढ़ाई कर रहे अपने छात्रों को बुलाने का बीड़ा उठा रहीं है । वैसी जहमत किसी ने प्रवासी मजदूरों को उनके गांव तक पहुंचाने के लिए नहीं उठाई। इसलिए उनके मासूम बच्चों को भूख से किलपना पड़ा, गर्भवती महिलाओं को उसी स्थिति में पैदल मिलों चलना पड़ा, किषोरों को भूखे - प्यासे चलना पड़ा। इन विपरीत हालातों ने कईयों की जान ले ली कितना दुखद है। इनकी स्थितियों को देख आंखे भर आती है और मन कहता है हे भगवान गरीबी किसी के भाग्य में मत देना। पहले से ही अभावों में रह रहे गरीबों पर दूसरी विपत्तियां जीवन का संकट बनकर आती है। रोटी की तलाष में यदि यह मजदूर बाहर जाते है तो पुलिस के डंडे खाने पड़ते है। ऐसी ही कई कहानियां हैै इसी तरह रोटी की तलाष में बाहर निकले मजदूर का पुलिस की पिटाई से पैर टूट गया। पुलिस ने उसे लावारिस छोड़ दिया । अन्य लोगों ने उसे अस्पताल पहुंचाया इलाज कराया। पुलिस इस दौर में अपनी ड्यटी ईमानदारी से निभा रहीं है लेकिन इस तरह किसी के हाथ - पैर तोड़ देना उचित नहीं है। पहले उनकी मजबूरी को समझे और उनकी मदद का इंतजाम करें । वहीं जो वाकई बिना वजह बाहर घूम रहे है उन पर कार्रवाही करें। इसके लिए सभी उनका सम्मान कर रहे है, लेकिन किसी गरीब मजदूर को उसकी मजबूरी समझे बिना मारना, अनुचित है। कोरोना का संकट कुछ समय का नहीं बल्कि लंबे समय तक रहने वाला है। जानकारी के मुताबिक इस एक माह के लाॅकडाॅउन से करीब 10 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए है। अभी भी हालात सामान्य होने में काफी वक्त लगेगा उससे साफ जाहिर है कि बेरोजगारों और गरीबों का आंकड़ा और अधिक बढ़ेगा। कोरोना के इस कहर ने असंगठित वर्ग की रीढ़ को तोड़ दिया है। आम गरीब होने के चलते इस वर्ग की आह का षायद किसी को अहसास नहीं है। लेकिन यहीं वर्ग भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी है। इसी वर्ग के बिखरने का प्रभाव कहीं न कहीं अर्थव्यवस्था पर दिखाई अवष्य देगा। इस वर्ग को असहाय छोड़ने के बजाएं योजनाबद्ध रूप से यदि काम किया जाता तो वैष्विक महामारी से जूझते देष में इन्हें अलग - थलग नहीं होना पड़ता।

Friday, April 24, 2020

पैदल गांव जा रहीं 12 साल की बच्ची की मौत

लॉकडॉउन के बाद से ही प्रवासी मजदूरों का अपने गांव जाने का सिलसिला जारी है। ऐसे ही अपने गांव को पैदल निकले मजदूर के साथ उसका परिवार था। लगातार तीन दिन तक पैदल चलने से 12 वर्षीय बच्ची की तबीयत बिगड़ गई जिससे उस मासूम की मौत हो गई। इसी तरह कई और मजदूरों ने अपनी जान गंवा दी है। बीमारी से ज्यादा भूख से जूझ रहे इन मजदूरों को फिलहाल अपने गांव के अलावा कुछ नहीं सूझ रहा क्योंकि कई मजदूरों के रहने तक का ठिकाना नहीं हो पा रहा है। किसी को एक वक्त का भोजना बमुष्किल मिल पा रहा है तो किसी के परिजन गांव में भूख से तड़पने को मजबूर है। ऐसे में उनकी चिंता भी इन मजदूरों को खाई जा रहीं है। अपना घर चलाने के लिए ही ये मजदूर अपना घर छोड़कर कमाने की तलाष में दूसरे राज्यों में आएं अब काम बंद है तो गांव तक पैसा भी नहीं पहुंचा पा रहे है। ऐसे में वहां पर उनके परिजन भूखे है और यदि दूसरे राज्य में इनकी कोई मदद कर भोजन दे भी रहा है तो कितने दिन अपने परिजनों की भूख की तड़प बर्दाष्त करेंगे। अपनी समस्याएं बताते हुए कई मजदूरों की आंखों में आंसू आ जाते है। किसी के बीवी बच्चे व बूढ़ी मां अकेली है तो किसी की पत्नी नहीं है बच्चे अकेले है। ऐसे मजदूर पर क्या गुजर रहीं होगी। सरकार इनके लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाती जिस तरह सरकारे कोटा में पढ़ रहे अपने छात्रों को वापस बुलाने के लिए बसें भेज रहीं है। उसी तरह क्या इन प्रवासी मजदूरों को भी उनके गांव वापस नहीं पहुंचाया जा सकता। या सरकार सिर्फ पैसे वालों की ही सुनती है और उनके ही बच्चे बच्चे है। आम मजदूर का परिवार नहीं उसके बच्चे नहीं होते क्या ? इस महामारी ने एक बात का अहसास करा दिया है कि गरीब होना किसी श्राप से कम नहीं है। बेचारा गरीब तिल - तिल मर रहा है, लेकिन उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। बेचारे मजदूर यदि दो पैसे कमाने दूसरे राज्य को आएं तो उन्हें सरकारे उनके राज्य नहीं भेज सकती लेकिन कोटा में पढ़ रहे देषभर के बच्चों को सरकारे अपने खर्च पर अपने वाहन से वापस लाने का प्रयत्न कर रहीं है। महाराष्ट्र की उद्धव सरकार ने एक घोषणा की थी जिसके तहत चीनी मिलों में काम करने वाले लाखों मजदूरों को टेस्ट कराने के बाद वापस उनके गांव भेजने का प्रबंध किया जाएंगा। हालांकि इन सभी का टेस्ट होने और रिपोर्ट आने में वक्त लगेगा लेकिन कम से कम कोई उपाय तो किया । इसी तरह अन्य सरकारों को भी अपने यहां रह रहे उन मजदूरों को उनके परिजनों के पास भेजने का प्रबंध करना चाहिए नही ंतो उन्हें और उनके परिवार के खाने का प्रबंध करना चाहिए। यहीं प्रवासी मजदूर देष की रीड़ है मजदूरों के बिना कोई काम संभव नहीं है महामारी के इस गंभीर हालात में सरकार को इनके लिए अधिक से अधिक सहयोग करना होगा ताकि इनकी जिंदगी भी बची रहे।

कोरोना से मृत डॉक्टर के षव पर पत्थरबाजी अमानवीय, असंवेदनषील ,षर्मनाक

देषभर में कोरोना की जंग में अग्रिम पंक्ति में खड़े हमारे कोरोना यौद्धाओं पर जिस तरह से अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। यह समाज के उस भद्दी तस्वीर को दिखा रहीं है जो पूरे देष कोष्षर्मषार कर रहीं है। अब तक डॉक्टरों पर तलवार, पत्थरों से हमले की घटनाएं तो हमारे सामने आई लेकिन अब उनके मृत षरीर पर भी इंसानियत के दुष्मन पत्थर बरसा रहे है। मंगलवार को चैन्नई के डॉक्टर की कोरोना के चलते मौत के बात जिस एंबुलेंस में अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा था । उस पर कई लोगों ने पत्थरों से हमला किया । इस हमले में डॉक्टर के परिजनों को बमुष्किल बचाया गया। आखिर लोगों को क्या हो गया है जो लोग अपनी जान पर खेलकर आपकों जिंदगी दे रहे है उन्हें भगवान की तरह पूजने उनकी रक्षा करने के बजाएं हम उन्हीं के भक्षक बनें हुए है। ऐसा करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाना चाहिए। वहीं सफाईकर्मी पर एक दबंग ने मंुह में सेनेटाइजर भर दिया दरअसल एक सफाईकर्मी गांव में सेनेटाइजेषन के लिए गया था ऐसे में कुछ बूंदे उस दबंग पर आ गिरी इससे वह इतना गुस्सा हुआ कि उसने सफाईकर्मी के मुंह मे सेनेटाइजर भर दिया जिससे उसकी मौत हो गई। महामारी के इस दौर में अपनी व अपने परिवार की परवाह किएं बिना देष सेवा में लगे इन यौद्धाओं के साथ समाज का ऐसा दुर्रव्यवहार किसी भी रूप में सहन करने योग्य नहीं है। यहीं नहीं सेवाएं देते हुए यह लोग खुद इस बीमारी की जद में आ रहे है । यहीं नहीं डॉक्टर पुलिसकर्मी अपनी जान भी गंवा चुके है। अब उनके परिवार का क्या होगा क्या कभी सोचा है ? नहीं सोचा तो सोचिए कि इन यौद्धाओं को नुकसान पहुंचाकर ये असमाजिक तत्व अपने विनाष को आमंत्रण दे रहे है। ऐसे लोगो ं के नहीं रहने से देष को कोई नुकसान नहीं होगा लेकिन इनकी वजह से यदि हमारे स्वास्थ्यकर्मी , पुलिसकर्मी व सफाईकर्मी को कुछ होता है तो देष को बहुत बड़ा नुकसान झेलना होगा । पुलिसकर्मियों व स्वास्थ्यकर्मियों की टीम के साथ जिस तरह का अमानवीय व असंवेदनषील व्यवहार हो रहा है वह किसी भी रूप में सहन करने योग्य नही ंहैै । इन सभी आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा देनी होगी ताकि आगे ऐसी हरकत करने वालों के हाथ उठने से पहले दस बार सोचे। इन जड़ बुद्धि के लोगों को कौन समझाएं कि यदि इन यौद्धाओं का सम्मान नहीं कर सकते तो कम से कम अपमान तो मत करों।

चावल की बंपर आवक से बनेगा सेनेटाइजर ना कि भूखे को भोजन

देश में चावल की फसल जरूरत का तीन गुना उपलब्ध हैयानि जितने चावल की आवश्यकता है उसका तीन गुना चावल खाद्य भंडार मेंरखा है। सरकार इस अत्यधिक चावल से सेनेटाइजर बनाने की योजना बना रहीं है। दरअसल कोविड - 19 के चलतेदेशभर में सेनेजाइजर की मांग बढ़ गई है। घर, बाहर, दफ्तर सभी जगह सेनेटाइजर की आवश्यकता है। जिसके चलते सेनेटाइजर की काला बाजारी भी शुरू हो गई थी । इसकी मांग को देखते हुए सरकार ने चावल से सेनेटाइजर बनाने को मंजूरी देने की बात कह रहीं है। हालांकि यहां बुनियादी सवाल यह हैकि जहां लाखों लोगों को भोजन नसीब नहीं हो रहा है ऐसे हालातों में चावल का इस तरह दुरूपयोग करना कहा तक उचित है। सोचने वाली बात है कि हमने ऐसी कई तस्वीरे देखी जिनमें लाखों गरीबों के पास भोजन नहीं पहुंच रहा है। किसी के पास एक वक्त का भोजन पहुंच रहा है तो किसी कोपेटभर खाना नहीं मिल पा रहा है। कई मजदूरों के परिवार वाले भूखमरी की कगार पर पहुंच गए है। वहीं कई जगहों पर ऐसे हालात है कि मजदूर सुबह छह बजे से भोजन की लाइन में लग रहे है ताकि 12 बजे भोजन खुलने पर उनका नंबर जल्दी आ जाएं। 10 से 12 घंटे के इंतजार के बाद उन्हें एक वक्त का भोजन नसीब हो रहा है ऐसे हालातों में इन लोगों तक दोनों वक्त का भोजन पहुंचाने के बजाएं सरकार सेनेटाइजर बनाने पर विचार कर रहीं है। शर्म की बात है कि जिस देश में गरीब के पास खाने को नहीं है महामारी के ऐसे हालातों में भी सरकार को उस वर्ग की चिंता है जो सेनेटाइजर का उपयोग करती है ना कि उन गरीबों की जिन्हें एक वक्त का भरपेट भोजन तक नहीं मिल रहा और किसी - किसी को तो कई - कई दिनों तक भूखा रहना पड़ रहा है। हमने मजदूरों के पलायन की भयावह तस्वीर देखी है जिनमें हजारों किलोमीटर की यात्रा के लिए यह बेसहारा मजदूर पैदल ही निकल पड़े थे। इनमें से कितने अपने गंतव्य तक पहुंचे होंगे। बिना खाएं पिएं आखिर बेचारे कैसे अपनी मंजिल तक आसानी से पहुंच सकते है। वहीं अभी भी कई राज्यों में प्रवासी मजदूर फंसे हुए है। बीच - बीच मेंवे सड़कों पर आकर अपनी उपस्थिति का अहसास करा रहे है। पेट की आग तो बूझाना पड़ेगा दूसरे राज्यों में जैसे - तैसे दिन कांट रहे इन मजूदरों के लिए भोजन की व्यवस्था कराने के बजाएं सरकार चावल का उपयोग सेनेटाइजर के लिए करने जा रहीं है। रिजर्व बैंक की प्रेस कांफ्रेस में कहा गया कि देश में अनाज के भंडार भरे हुए है अनाज पर्याप्त मात्रा में है तो उन मजदूरों को संतुष्ट किया गया कि आपको भूखा नहीं रखा जाएगा लेकिन इनमें से कई भूखे रह रहे है ऐसे में सरकार को इस बुनियादी सवाल पर विचार करना चाहिए ताकि चावल का उपयोग सेनेटाइजर की बजाएं भूखों को भोजन देने में किया जाएं।

क्या और तबाही लाएगा कोविड -19 ?

हाल ही में आएं विष्व स्वास्थ्य संगठन के बयान ने दुनिया को और डरा दिया है , जिसमें कोरोना के कहर के बढ़ने के आसार को लेकर चेताया गया है। दुनिया पहले से ही कोरोना से जंग लड़ रहीं है। अभी तक इस महामारी का कोई भी पुख्ता इलाज सामने नहीं आया है। भगवान भरोसे नई- नई विधाओं पर काम किया जा रहा है। दिल्ली में प्लाज्मा थैरेपी से कुछ बात बनती दिख रहीं हैै । हाल ही में एक मरीज को इससे फायदा हुआ जिसके बाद उसे वेंटिलेटर से हटा दिया गया है। वहीं दूसरी ओर राजस्थान में रैपिड टेस्ट किट के परिणाम गलत आने के बाद टेस्टिंग के लिए इनका प्रयोग फिलहाल रोक दिया गया है। हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी की गई सूचना में यह कहा गया कि अब जो कोविड के केस सामने आ रहे है उनमें किसी प्रकार के लक्षण पीडि़त में उभर कर सामने नहीं आ पा रहे है। इस तरह के करीब 80 प्रतिषत मामले सामने आएं जिनमें पीडि़त को कोई परेषानी नहीं थी बावजूद इसके वह कोविड पॉजिटिव पाया गया। इस तरह के आंकड़े और डर पैदा कर रहे है आखिर इस वायरस की हद क्या है। जब कोरोना वायरस का प्रकोप षुरू हुआ था उस समय ऐसी बाते भी कहीं गई थी कि तापमान बढ़ने पर इसका असर षायद कम हो सकता है हालांकि इस बारे में कोई पुख्ता सबूत नहीं थे और ना ही है। लेकिन जिस तरह तापमान थोड़ा बढ़ा है इसके बाद इस वायरस के लक्षण भी बदल रहे है यानि अब यह साइलेंट होकर वार कर रहा है। सबकुछ पता होते हुए भी जब हम इस वायरस को पकड़ नहीं पा रहे थे तो अब जब यह साइलंेट वार करेगा तो सोचिए क्या हालात बनेंगे । वहीं विष्व स्वास्थ्य संगठन ने हालिया बयान भी डराने की ओर ही इषारा कर रहे है। तमाम परेषानियों से जूझते हुए संक्रमितों के बीच रह रहे हमारे स्वास्थ्यकर्मियों, सफाईकर्मियों , पुलिसकर्मियों के लिए यह और परेषान करने वाली स्थिति है। परेषानियों का सिलसिला थमने के बजाएं षायद बढ़ने की ओर इषारा कर रहा है। इस वायरस के चलते कहीं न कहीं पानी के उपयोग की अधिकता बढ़ी है। बार - बार हाथ धोना वहीं अब डर के चलते हम बाजार से लाई गई सब्जियों को भी पहले से अधिक बार धोते है। हालांकि स्वास्थ्य के लिहाज से हाथों की सफाई पर जोर देना अच्छा ही है। लेकिन गर्मियों में जलसंकट की समस्या हमारे देष में नई नहीं है। देषभर से गर्मियों के दौरान आने वाली जलसंकट की कई कहानियां हमने देखी और सुनी है। जिसमें कई - कई कोस चलकर महिलाएं पीने के पानी की जुगत करती देखती है। पानी के लिए जंग जैसे हालात भी बनते हुए हमने देखे है। जमीन में पानी की कमी होने से बोर , हेंडपंप आदि सूखने लगते है। उन हालातों में जब कई लोगों को पीने का पानी तक नसीब नहीं होता ऐसे हालातों में सोचिए ! कि क्या कोरोना से लड़ाई और मुष्किल नहीं हो जाएंगी। इस वक्त ऐसा लग रहा है मानो भगवान दुनिया की परीक्षा पर परीक्षा लिए जा रहीं है, लेकिन परीक्षा की इस घड़ी में हम सभी को अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभानी होगी । यदि हम अपने कर्त्तव्य पथ से नहीं डिगे और अपने कर्म ईमानदारी से करते रहे तो परीक्षा की यह घड़ी भी निकल जाएंगी और ईमानदारों पर प्रकृति भी मेहरबान होगी । विष्वास है। हम इस जंग से एकसाथ लड़कर जरूर जीतेंगे ।

Friday, April 3, 2020

डाॅक्टरों से बदसलूकी - '’ष’र्मनाक...... षर्मनाक ....षर्मनाक ....

कोरोना के कहर से दुनिया कराह रहीं है। इस समय दुनियाभर के लिए यदि कोई आषा की किरणें हैं तो वह डाॅक्टर और पैरामेडिकल स्टाॅफ ही है। दुनिया को उनका षुक्रगुजार होना चाहिए कि अपनी जान व अपने परिवार की फिक्र किए बिना यह लोग निःस्वार्थ भाव से कोरोना पीड़ितों की सेवा में जुटे हुए है। इनकी जितनी प्रषंसा की जाएं कम है ऐसे मुष्किल वक्त में हमें भी अपनी जिम्मेदारियों से भागना नहीं चाहिए। इस समय देष में 2 हजार से अधिक मरीज कोरोना पाॅजिटिव है। देष के सभी राज्यों में कोरोना से मरीजों के संक्रमित होने का सिलसिला जारी है। सभी स्थानों पर सरकारी अस्पतालों में डाॅक्टर संसाधनों के अभाव से जूझते हुए अपनी परवाह किए बिना सेवाएं दे रहे है। ऐसे माहौल में यदि उनके उपर पथराव करने व धूकने जैसी अमानवीय घटनाएं देखने को मिले तो खून खौल उठता है उन लोगों के खिलाफ जो इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहे है। मध्यप्रदेष के सफाई में नंबर वन षहर इंदौर से डाॅक्टरों के खिलाफ दो षर्मनाक घटनाएं सामने आई है। जिनमें एक घटना टाट पट्टी बाखल इलाके की है जहां के अब्दुल हामीद की कोरोना से मौत हो जाने के बाद स्वास्थ्यकर्मी उनके परिजनों को ले जाने और उस क्षेत्र के लोगों की जांच करने आई थी । इस दौरान लोगों ने स्वास्थ्य कर्मियों पर पथराव कर दिया कई लोगों ने मिलकर उन पर हमला बोल दिया । एक स्वास्थ्यकर्मी के मुताबिक वे बमुष्किल वहां से बचकर निकल पाएं नही तो ये लोग इनकी जान ले लेते। वहीं दूसरी घटना इंदौर के ही रानीपुरा की है जहां स्वास्थ्यकर्मियों पर धूकने की घटना हुई थी। जो लोग आपको जिंदगी दे सकते है उनकी जान से यदि इस तरह से खिलवाड़ करना किसी भी रूप में उचित नहीं है। हालांकि राज्य सरकार ने इन दोनों मामलों में आरोपियों पर कार्यवाही करते हुए पहली घटना में आरोपियों पर रासुका और दूसरी घटना में संबंधितों पर एफआईआर दर्ज की गई है। वहीं यूपी के गाजियाबाद में तब्लीगी जमात के कोरोना पाॅजिटिव छह मरीजों ने नर्सो के साथ गलत व्यवहार किया। जानकारी के मुताबिक यहां इन मरीजों ने नर्सो के सामने कपड़े उतारे और अष्लील हरकते की। अगर इस तरह से यह मरीज उन लोगों के साथ बर्ताव करेंगे जो आपको जिंदगी दे रहे है तो यह कतई सहन नहीं किया जा सकता। आखिर ये स्वास्थ्य कर्मी दिन रात किसकी सेवा में लगे हुए है ऐसे में इनके साथ इस तरह का अमानवीय व्यवहार मानवीय गुण को नहीं दर्षाता । इस समय हर जिम्मेदार नागरिक का यहीं फर्ज बनता है कि डाॅक्टरों व स्टाॅफ का भरपूर सहयोग किया जाएं । एक तरफ कोरोना का कहर वहीं दूसरी ओर मरीजों के जानवर नुमा व्यवहार के बीच स्वास्थ्यकर्मियों की सेवाएं अनवरत जारी हैै । संसाधनों के अभाव में सेवाएं देे रहे डाॅक्टर कोरोना पाॅजिटिव मरीजों के बीच में दिन रात रह रहे हमारे डाॅक्टरों के पास पर्याप्त संसाधन भी नहीं है। 30 मार्च को टाइम्स आॅफ इंडिया की खबर के मुताबिक कोलकाता में डाॅक्टरों को रेन कोट दे दिए गए। वहीं कई जगहों पर (पीपीई प्लास्टर प्रोटेक्षन ) की गुणवत्ता कहीं से भी संतोषजनक नहीं है। देष भर में करीब 3.5 लाख पीपीई है अब देषभर से इसकी कमी का षोर सामने आने लगा है। मध्यप्रदेष सरकार भी संसाधनों को जुटाने में प्रयासरत है लेकिन यहां भी संसाधनों की कमी साफ जाहिर है। प्रदेष भर में जहां 900 वेंटीलेटर है वहीं 7.5 करोड़ की आबादी में तमाम सरकारी व गैर सरकारी अस्पतालों को मिलाकर सिर्फ 1200 बस्तर है। करीब 16709 पीपीई है वहीं एन- 95 मास्क 74,380 है जबकि थ्री लेयर मास्क 5 लाख के आसपास है। यानि डाॅक्टर व पैरामेडिकल स्टाॅफ अपनी जान पर खेलकर लोगों की जान बचाने में जुटे हुए है। तमाम परेषानियों से जुझते हुए वे अपनी सेवाएं दे रहे है। यदि डाॅक्टरों की सेफ्टी नहीं होगी तो उनकी जान पर खतरा मंडराता रहेगा। इसी का परिणाम है कि देष में करीब 54 डाॅक्टर कोरोना पाॅजिटिव पाएं गए है। वहीं अकेले इटली में 50 से अधिक डाॅक्टरों की मौत हो चुकी है और 7 हजार से अधिक हेल्थ वर्कर संक्रमित है। इस समय हमें अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए डाॅक्टरों की मदद करना चाहिए। तब्लीगी जमात की जहालत निजामुद्दीन के मरकस में तब्लीगी जमात के लोगों ने जो कांड किया उसका खामियाजा पूरा देष भुगत रहा है। अभी भी ये लोग देष के अलग -अलग हिस्सों में जाकर छुपे हुए है । स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी प्रेस काॅफ्रेंस में कहा गया कि तब्लीगी जमात से जुड़े लोगों के 48 राज्यों में होने की संभावना है । जमात के करीब 647 लोग कोरोना पाॅजिटिव पाएं गए है। इस मुष्किल घड़ी में तब्लीगी जमात ने जो कारनामा किया है उसका अंजाम पूरा देष भुगत रहा है विडंबना यह है कि इनके लोग इलाज में स्वास्थ्य कर्मियों की मदद भी नहीं कर रहे है। वहीं देष के अलग - अलग हिस्सों में अभी भी ये लोग छुपे हुए है। तमाम राज्यों के प्रषासन स्तर पर उन्हें खोजने का प्रयास जारी है । ऐसे में साफ जाहिर है कि लोग जानबूझकर खुद को छुपाकर दूसरों को भी संक्रमित करना चाहते है। ऐसा करके कहीं न कहीं यह देष द्रोही कहलाने का काम कर रहे हैै । यदि ये लोग सच्चे देष भक्त होते तो छुपने के बजाए खुद बाहर आकर अपना टेस्ट करवाते और इस मुष्किल घड़ी में डाॅक्टरों की मदद करते । पुलिसकर्मियों को बरगलाने के बजाएं खुद अपनी पहचान बताते और जो अन्य लोग मौजूद थे उनकी भी जानकारी देते । इन लोगों को पकड़ने के बाद इन पर आपराधिक केस दर्ज करना चाहिए इन्हें आसानी से नहीं छोड़ना चाहिए ताकि इन जैसों को कुछ तो सबक मिल सकें। अन्य गंभीर बीमारियों के मरीजों की आफत कोरोना से चल रहीं इस जंग के बीच वे मरीज आफत में आ गए है जो कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से लड़ रहे है। कैंसर के इलाज के दौरान डाॅक्टर मरीज को लगातार आने की सलाह देते है इलाज को रोकना कैंसर के मरीज के लिए घातक साबित हो सकता है। ऐसे में जब बस , ट्रेन व प्लेन सभी आवागमन के साधन बंद है तो ऐसे में मरीजों का बाहर से आना संभव नहीं है। ऐसे में कैंसर के मरीज जहां है वहीं अपना इलाज करा सकते है। हालांकि आपातकालीन सेवाएं जारी है लेकिन ऐसे में कैंसर के अन्य मरीजों के लिए परेषानियां बढ़ती जा रहीं हैै क्योंकि उनकी कीमोथैरेपी में गैप करना रोग को बढ़ाने जैसा ही है। लेकिन कैंसर के मरीज का कोरोना के संपर्क में आना उनके लिए और घातक सिद्ध हो सकता है। ऐसे में उन मरीजों के डाॅक्टरों का फर्ज है कि उन्हें फोन के जरिए ही जितनी हो सके जानकारी दी जाएं और इस समय वे किस प्रकार अपने इलाज को आगे बढ़ाएं इसकी भी जानकारी देना चाहिए। हालांकि प्रत्येक कीमोथैरेपी से पहले मरीज के कई ब्लड टेस्ट होते है लेकिन इस माहौल में जितना संभव हो डाॅक्टरों को अपने इन मरीजों का भी ध्यान रखना होगा। ताली और दिए के बजाए संसाधनों दरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के कर्मवीरों के लिए पहले ताली और अब दिया जलाकर हौसला अफजाई करने को कहा है। इसके बजाएं इस समय इन कर्मवीरों को संसाधनों की अधिक दरकार है। अपनी जान को दांव पर लगाकर ये दिन - रात कोरोना मरीजों को ठीक करने में जुटे हुए है। इस समय उनका हम रोज भी सम्मान में कुछ न कुछ करें तो कम होगा बजाएं इसके इस वक्त उन्हें जिन संसाधनों की दरकार है। सरकार से निवेदन है कि उस दिषा में तीव्र गति से काम करने की दरकार हैै ताकि डाॅक्टर्स व पैरामेडिकल स्टाफ अपनी पूरी सुरक्षा के साथ इन मरीजों के इलाज में जुटे । असुरक्षा के माहौल में डाॅक्टर्स खुद संक्रमित होते जा रहे है ऐसे में कहीं यदि अस्पतालों को डाॅक्टरों के लिए आइसोलेट करना पड़ जाएं तो आम मरीजों का इलाज कहा होगा । इस समस्या से बचने के लिए जरूरी है कि जल्द से जल्द डाॅक्टरों को अच्छी गुणवत्ता के सुरक्षा कवज मुहैया कराएं जाएं ताकि वे सुरिक्षत होकर कोरोना के मरीजों को सुरक्षित रखने का काम करें।

Thursday, March 26, 2020

कोरोना से पहले भूख - प्यास से मरने की कगार पर बेघर

कोरोना के कहर के चलते हजारों दिहाड़ी मजदूरों की जान पर बन आई है। रोजी - रोटी की आस में महानगरों में रह रहे इन मजदूरों की जिंदगी संकट में आ गई है। वैष्विक महामारी कोरोना के कारण हुए देषव्यापी लाॅकडाॅउन से इनकी रोजी- रोटी छिन गई है। अब ये लोग 400 - 500 किलोमीटर की यात्रा पैदल करने पर मजबूर हो गए है। इनके छोटे - छोटे मासूम बच्चे कई दिनों से भुखे है। परिवार के साथ ये लोग अपने - अपने गांव की ओर पैदल ही निकल पड़े है। इनका कहना है कि सरकार हमारे लिए कुछ करें नही ंतो कोरोना से पहले हम भूख से मर जाएंगे। इनकी हालत को देखकर रोना आ रहा है। हमारे यहां कितनी असमानता है। जिन जगहों पर ये काम कर रहे थे किसी ने इनके बारे में नहीं सोचा कुछ ठेके पर काम करते थे कुछ अन्य संस्थानों में थे। सरकार राषन , सिलेंडर और खातों में पैसा डालने की बात कर रहीं है लेकिन न तो इनका कहीं खाता है। ऐसे में सरकार ने जो ऐलान किया है खातों में पैसा डालने का तो जिन लोगों के पास खाता नहीं है क्या उन्हें जीने का हक नहीं है । उनके लिए रहने खाने की व्यवस्था करना आखिर किसकी जिम्मेदारी है। सरकार ने लाॅकडाउन कर दिया लेकिन इनका और इनके परिवार की फिक्र कौन करेगा ? अगर इस तरह भूखे प्यासे के चलते रहे तो अपने गांव भी सही सलामत पहुंच पाएंगे या नहीं ? उन बच्चों के रोते हुए चेहरे और कई दिनों से भुखे होने की बात सुनकर मेरा दिल दहल गया। आंखों में पानी आ रहा है काष इनकी कोई मदद कर दे। इन्हें किसी तरह पानी और खाना नसीब हो जाएं । देषव्यापी लाॅकडाउन की घोषणा करने से पहले इन्हें सूचना दे दी जाती तो कम से कम ये लोग अपने गांव तो सहीं सलामत पहंुच जाते। गौरतलब है कि कोरोना कहर बनकर दुनियाभर पर टूटा है ऐसे में दुनिया के दूसरे देषों जैसे ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन , आस्टेªलिया आदि ने वहां के मजदूर वर्ग के लिए बकायदा आर्थिक मदद की पूरी व्यवस्था की है। हमारे यहां सरकारे घोषणाएं अवष्य कर रहीं है लेकिन पंजीकृत मजदूरो ं के लिए लेकिन जो पंजीकृत नहीं उनका क्या । इसकी एक बानगी एक रिसचर के आंकड़ों से साफ हो जाती है कि अकेले दिल्ली में दस लाख मजदूर कंस्ट्रक्षन में काम करते है जबकि मात्र 35 हजार मजदूर पंजीकृत किए गए है। ऐसे में अपंजीकृत मजदूरों के लिए कौन इस आफत की घड़ी में देवता बनकर आएगा। इनमें कछ तो ऐसे है जो मुंबई से नेपाल जाने के लिए निकले थे और दिल्ली में आकर फंस गए है। अब ये नेपाल किस तरह पहंुचेगे न तो पैसे है न कोई दूसरी व्यवस्था अब इनका क्या होगा ? किसी का छोटा बच्चा है जिसे दूध चाहिए लेकिन मां ने भी दो दिन से कुछ नहीं खाया है दूध नहीं आ रहा बच्चा भूख के मारे किलप रहा है। हे भगवान ऐसे लोगों की मदद के लिए जल्दी सरकार की आंखे खोलिए । जानते है कि कोरोना भयंकर बिमारी है लेकिन इन लोगों को इस तरह मरने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता इनके लिए सरकार को अपने स्तर पर कुछ व्यवस्था जल्दी करनी होगी उम्मीद की जा सकती है कि किसी गांव में इन्हें मदद मिल जाएं व रहने का ठिकाना मिल जाएं क्योंकि भूखे - प्यासे इतनी लंबी दूरी पैदल तय करना आसान नहीं होगा। ये लोग कुछ दिनों से पानी पी कर दिन कांट रहे है। वहीं जब टेंकर आता है तो भीड़ लग जाती है ऐेसे में टैंकर भी लौट जाते है बहरहाल इन्हें पीने का पानी तक नसीब नहीं हो रहा है। कोरोेना का कहर इन पर दोहरी मार लेकर आया है क्योंकि इन्हें कोेरोना से ज्यादा भूख- प्यास से मरने का डर है। जनवरी में कोरोना का मामला भारत में सामने आ गया था ऐसे में तभी सरकार को सतर्क हो जाना था और मामले की नजाकत को समझते हुए इस बेघर आबादी को उनके घर भेज देना था ताकि ये समय रहते अपने गंतव्यों तक पहुंच जाते। हालांकि डब्ल्यूएचओ भारत के लाॅकडाउन की पहल की सराहना अवष्य की जा रही है लेकिन भारत में लोगों की आर्थिक स्थितियों को ध्यान में रखकर निर्णय लिए जाते तो बेघरों के मासूम बच्चों को भूख - प्यास से इस तरह तड़पना नहीं पड़ता। हालांकि कई स्वयंसेवी संस्थाएं , पुलिस वाले , अन्य संस्थाएं भूूखों को भोजन दे रहे है लेकिन बावजूद इसके एक बड़ी आबादी तक भोजन नहीं पहंुच रहा है। इसलिए ये आबादी पैदल ही अपने गांवों के लिए निकल पड़े है। आखिर क्या करें ये लोग इनके पास और कोई रास्ता भी नहीं है। चंद लोगों की लापरवाहीं ने पूरी दुनिया व देष को संक्रमण के खतरे में डाल दिया है। गौरतलब है कि यह संक्रमण चीन से फैला था यानि विदेषों से यह संक्रमण फैलते - फैलते भारत तक पहंुचा है। भारतीय ने इसे जन्म नहीं दिया है । एक गरीब और आम आदमी तो विदेष नहीं जाता है। समृद्ध परिवार व उनके बच्चे ही विदेष में जाते है या तो घूमने या पढ़ने ऐसे लोगों को यदि उसी वक्त बंद कर दिया जाता तो षायद इन मजदूरांे को इस तरह के हालात से नहीं गुजरना पड़ता। हालांकि एयरपोर्ट पर विदेषों से आएं लोगों से षपथ प़त्र भरवाया गया था कि आप घर में जाकर 14 दिन तक अलग रहेंगे लेकिन लोगों ने इसका पालन नहीं किया इसे गंभीरता से नहीं लिया ये कोई अनपढ़ लोग नहीं थे पढ़े लिखे थे और विदेषों से आएं थे लेकिन इन लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया परिवार से मिले लोगों से मिले और कोरोना का संक्रमण अपनों सहित दूसरों में फैला दिया। अब यह संक्रमण चाहे अनचाहे अन्य लोगों में फैल रहा है। हालांकि सरकार ने लाॅक डाॅउन घोषित किया है इसे सही समय पर करने की बात भी की जा रही है लेकिन यदि यह थोड़ा पहले इन दिहाड़ी मजदूरों की सुध ले लेती तो इनके मासूमों को इस तरह भूख - प्यास के लिए किलपना नहीं पड़ता। अब ऐेसे वक्त में सरकार को इनकी कुछ तो मदद करना ही चाहिए ताकि ये किसी तरह अपने गांव पहुंच जाएं सही सलामत।