Tuesday, March 26, 2013

देश की नींव को कमजोर कर रहा गठबंधन


देश में कुकुरमु̣ो की तरह उग आई क्षेत्रीय पार् ियों ने देश को खोखला कर दिया है। राष्ट्रीय पार् ी की बां और गद्दी की भूख ने देश में धीरे-धीरे छो ी-छो ी पार् ियों को जन्म दिया, जो आगे चलकर जोह रहा हमारे देश की राजनीति धेग̀डो पर चल रही है। विचारों की असमानता उन राज्यों की बागडोर संभालने लगी। समय गुजरता गया और देश के हालात भी बदलते गए राष्ट्रीय छवि के नेताओं के साथ राष्ट्रीय पार् ियों का दौर भी खत्म हो गया। अब देश की सरकार यहां वहां से थेग̀डा लगा कर चल रही है। जब किसी की मांग पूरी नहीं होती तो वह अपना हाथ खींच लेता है और सरकार की नैय्या डगमगाने लगती है। इसी से राजनीतिक अस्थिरता के दौर का उदय होता है। आज हमारा देश राजनीतिक अस्थिरता से ही गुजर रहा है। कई क्षेत्रीय पार् ियों के सहयोग से चल रही सरकार पर आए दिन संक अपना दबदबा बनाए रखना चाहती है और जब उसे अपना उल्लू सीधा होता नहीं दिखता तो वह सरकार से हाथ खींच लेती है। इस तरह सरकार छो ी-छो ी पार् ियों के रहमोकरम पर चलती रहती है। देश में आज क्षेत्रीयता इस तेजी से हावी हुई है कि वर्तमान में एक देश एक पार् ी का सपना तो सपने में भी नहीं देखा जा सकता। गठबंधन की राजनीति ने राजनीति की दशा और दिशा दोनों ही बदल दी है। सरकार को विपक्ष के साथ-साथ अपने घ क दलों का विरोध भी झेलना प̀डता है। गठबंधन की शुरूआत और परिणाम सबसे पहले १९६२ में गठबंधन की राजनीति की शुरूआत हुई थी। उसके बाद कांग्रेस ने एक क्षत्र राज किया। फिर १९९६ में अ ल जी के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनी और तब से यह सिलसिला अनवरत जारी है। राज्यों में क्षेत्रीय पार् ियों की पैठ के बाद राष्ट्रीय पार् ी अपनी भूमिका ठीक ढंग से नहीं निभा पाई उसी का परिणाम हम आज तक झेल रहे हैं। गठबंधन से देश को फायदा कम और नुकसान ज्यादा हुआ है। पहली बात तो गठबंधन में पार् ियों के बीच हर मुद्दे पर आम सहमति बन पाना उतना आसान नहीं होता। इसमें समय और उर्जा दोनों की ज्यादा खपत होती है हर पार् ी पहले अपने हित साधने की कोशिश करती है और बाद में पूरे गठबंधन के हित के बारे में सोचा जाता है। इसके चलते देश के विकास पर ध्यान कम और आपसी मतभेद को सुलझाने में समय ज्यादा खर्च होता है। वैसे मतभेद तो एक पार् ी के कार्यकर्ताओं में भी हो सकते है, लेकिन उन्हें सुलझाने में व̣ाâ कम जाया होता है और शीघ्र उसका हल निकाल लिया जाता है। लेकिन पार् ियां भिन्न होेने पर बात को लंबा खींचा जाता है और हर हाल में अपने पक्ष को मजबूत करने का प्रयास किया जाता है। जब मिली जुली सरकार होती है तो कभी भी आफत आ सकती है। पिछले दिनों यूपीए-२ से ममता बेनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया था। पहले उन्हीें के कहने पर सरकार ने रेल मंत्री बदला और बाद में उन्हीं ने साथ छो̀ड दिया। यानि कुलमिलाकर हर ओर अस्थिरता रहती है मंत्रियों को मंत्रालय सौंपने से लेकर कोई भी पैâसला करने में प्रमुखों पर तलवार ल कती रहती है। आज है कल नहीं के बीच पेंडुलम की तरह ल कती सरकार किसी भी के बादल छाए रहते है। क्योंकि हर पार् ी अपने राज्य में लिहाज से देश के लिए अच्छे संकेत नहीं है।

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