Friday, April 24, 2020

पैदल गांव जा रहीं 12 साल की बच्ची की मौत

लॉकडॉउन के बाद से ही प्रवासी मजदूरों का अपने गांव जाने का सिलसिला जारी है। ऐसे ही अपने गांव को पैदल निकले मजदूर के साथ उसका परिवार था। लगातार तीन दिन तक पैदल चलने से 12 वर्षीय बच्ची की तबीयत बिगड़ गई जिससे उस मासूम की मौत हो गई। इसी तरह कई और मजदूरों ने अपनी जान गंवा दी है। बीमारी से ज्यादा भूख से जूझ रहे इन मजदूरों को फिलहाल अपने गांव के अलावा कुछ नहीं सूझ रहा क्योंकि कई मजदूरों के रहने तक का ठिकाना नहीं हो पा रहा है। किसी को एक वक्त का भोजना बमुष्किल मिल पा रहा है तो किसी के परिजन गांव में भूख से तड़पने को मजबूर है। ऐसे में उनकी चिंता भी इन मजदूरों को खाई जा रहीं है। अपना घर चलाने के लिए ही ये मजदूर अपना घर छोड़कर कमाने की तलाष में दूसरे राज्यों में आएं अब काम बंद है तो गांव तक पैसा भी नहीं पहुंचा पा रहे है। ऐसे में वहां पर उनके परिजन भूखे है और यदि दूसरे राज्य में इनकी कोई मदद कर भोजन दे भी रहा है तो कितने दिन अपने परिजनों की भूख की तड़प बर्दाष्त करेंगे। अपनी समस्याएं बताते हुए कई मजदूरों की आंखों में आंसू आ जाते है। किसी के बीवी बच्चे व बूढ़ी मां अकेली है तो किसी की पत्नी नहीं है बच्चे अकेले है। ऐसे मजदूर पर क्या गुजर रहीं होगी। सरकार इनके लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाती जिस तरह सरकारे कोटा में पढ़ रहे अपने छात्रों को वापस बुलाने के लिए बसें भेज रहीं है। उसी तरह क्या इन प्रवासी मजदूरों को भी उनके गांव वापस नहीं पहुंचाया जा सकता। या सरकार सिर्फ पैसे वालों की ही सुनती है और उनके ही बच्चे बच्चे है। आम मजदूर का परिवार नहीं उसके बच्चे नहीं होते क्या ? इस महामारी ने एक बात का अहसास करा दिया है कि गरीब होना किसी श्राप से कम नहीं है। बेचारा गरीब तिल - तिल मर रहा है, लेकिन उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। बेचारे मजदूर यदि दो पैसे कमाने दूसरे राज्य को आएं तो उन्हें सरकारे उनके राज्य नहीं भेज सकती लेकिन कोटा में पढ़ रहे देषभर के बच्चों को सरकारे अपने खर्च पर अपने वाहन से वापस लाने का प्रयत्न कर रहीं है। महाराष्ट्र की उद्धव सरकार ने एक घोषणा की थी जिसके तहत चीनी मिलों में काम करने वाले लाखों मजदूरों को टेस्ट कराने के बाद वापस उनके गांव भेजने का प्रबंध किया जाएंगा। हालांकि इन सभी का टेस्ट होने और रिपोर्ट आने में वक्त लगेगा लेकिन कम से कम कोई उपाय तो किया । इसी तरह अन्य सरकारों को भी अपने यहां रह रहे उन मजदूरों को उनके परिजनों के पास भेजने का प्रबंध करना चाहिए नही ंतो उन्हें और उनके परिवार के खाने का प्रबंध करना चाहिए। यहीं प्रवासी मजदूर देष की रीड़ है मजदूरों के बिना कोई काम संभव नहीं है महामारी के इस गंभीर हालात में सरकार को इनके लिए अधिक से अधिक सहयोग करना होगा ताकि इनकी जिंदगी भी बची रहे।

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