Friday, August 20, 2010

बेरोजगारी और अस्वस्थता

स्वस्थ समाज की कल्पना में बेरोजगारी सबसे बडा रोढा है । जब भर पेट खाना नसीब नहीं होगा तो व्यक्ति के स्वस्थ रहने की कल्पना करना बेमायने है । देश में बेरोजगारी की दर करीब 10.7 है बेरोजगारी के मामले में भारत 155 वे स्थान पर है । यानि इतने लोग रोजाना रोटी की जुगत में दिन कांटते है कभी पेट में अन्न के दो दाने चले जाते है तो कभी खाली पेट ही नींद को बुलाना पडता है । गरीबों को रोजगार देेने के लिए सरकार ने नरेगा की शुरूआत तो की लेकिन जमीनी स्तर पर पडताल करने पर पता चलता है कि जरूरतमंदों को ही इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है । जब इस योजना के बारे में पिपरिया ब्लाक के समीस्थ ग्रामों में जाकर जायजा लिया तो हाल काफी बेहाल नजर आएं । पिपरिया के समीस्थ ग्राम तरौनकला में अधिकतर लोगों के पास जाॅब कार्ड तो बने है , लेकिन सिर्फ नाम के लिए । इसके तहत वर्ष 2009 में किसी को तीन दिन काम मिला तो किसी को पांच दिन और कई लोगों ने बताया कि जितना काम किया उतना पैसा भी नहीं मिला । हरीपाल कार्ड क्रमांक 0503 के जाॅब कार्ड देखने पर पता चला कि पिछले साल उसमें करीब तीन दिन के लिए काम मिला । हरीपाल कहते है कि मंै तो बांस से टोकनी व सूपा बनाने के अपने पैतिृक कार्य करता हूं, लेकिन आजकल बांस नहीं मिलने के कारण रोटी की तलाश के लिए सरकारी योजना में काम की तलाश में लगा रहता हूं लेकिन इसके सहारे भी रोजी-रोटी नहीं चल पा रही है । उसने बताया कि रोजगार नहीं मिलने और ध्ंाधा नहीं चल पाने के कारण परिवार का पेट पालना बहुत मुश्किल हो गया है ।
प्रिवार में कमाने वाला मंै ही हूं बांस मिल जाते है तो मेरी पत्नी भी काम में मेरा सहयोग कर करती है । अब राशन काॅर्ड ही एक मात्र सहारा है, लेकिन उसमें भी 30 किलों के बजाय सिर्फ 20 किलों अनाज मिलता है पिछले 4-5 महिने से तो चावल मिल ही नहीं रहा । इतने में अच्छे से गुजारा नहीं हो पाता है । यहीं कारण है कि गांव में महिलाओं में एनीमिया की शिकायत रहती है जब माता को ही अच्छा व पर्याप्त भोजन नहीं मिलेगा तो बच्चा तो कुपोषित होगा ही । आंगनबाडी में भी महिलाओं को सिर्फ पोषण दिवस के दिन ही खिचडी या हलवा मिलता है । वहीं मुन्नालाल जिसका पंजीयन क्रमांक 0382 है उसका तो अभी तक खाता भी नहीं खुल पाया है । इस योजना के तहत उसे अभी तक काम नहीं मिला है ।
जहां तक बजट का सवाल है तो पिपरिया ब्लाॅेक का लेबर बजट वर्ष 2009-10 में 5 करोड 35 लाख रूपए था जिसमें से 2 कर्रोड 680 लाख रूपए का उपयोग हुआ । वर्ष 2010-11 के लिए 5 करोड 60 लाख का बजट आया है । पिपरिया की 53 ग्राम पंचायतों में 27,643 जाॅब कार्डधारी हैं, जिनमें से 3 हजार 761 मजदूरों ने अब तक काम किया है । इस योजना के तहत 456 कामों का लक्ष्य था इसके विपरीत कुल 134 काम ही हो पाए है ।ग्राम तरौनकलां में 889 गरीबी रेखा के अंतर्गत आने वाले ऐसे परिवार है जो नरेगा के तहत पंजीबद्व है । जबकि काम करने वालों की संख्या 2230 है जिनमें से सिर्फ 8.07 फीसदी लोगों के ही एकाउंट खुले हैं । ग्राम के सचिव से मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष 2008-09 में कुल 100 लोगों ने ही इसके तहत काम किया । गांव में यह योजना क्यों फैल हो रही है इस संबंध में पंचायत के सरपंच व सचिव इसका सीधा जिम्मेदार लोगों को ही ठहरा देते है उनका कहना है कि लोग इस योजना का लाभ ही नहीं उठाना चाहते वहीं दूसरी ओर लोगों का कहना है कि कौन भूखा मरना चाहता है यदि काम मिलेगा तो हम क्यों नहीं करेंगे । जब काम ही नहीं देंगे तो हम कैसे करेंगे ।
स्वास्थ्य का सीधा संबंध भरपेट भोजन से है जब तक भरपेट भोजन नहीं मिलेगा तब तक आदमी स्वस्थ कैसे रह सकता हैं । रोजगार नहीं होने के कारण ही बीमारियों का ग्राफ बढता जा रहा है । मातृत्व मृत्यु और शिशु मृत्यु दर के लिए भी कहीं न कहीं यह जिम्मेदार है । गर्भावस्था के दौरान मां को अपने और बच्चे दोंनों के लिए आहार लेना होता है, लेकिन उसे अपने लिए ही पेट भर भोजन नहीं मिल पाात तो बच्चा तो दूर की बात है । समय पर वह संतुलित आहार नहीं मिलने के कारण लोग विभिन्न बीमारियों का शिकार हो जाते है यदि बीमारियों और मृत्यु को रोकना है तो सबसे पहले बेरोजगारी को मिटाने की पहल करना होगा ।

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