Monday, May 4, 2020

गरीबी सबसे बड़ा दुर्भाग्य

कोरोना काल में सबसे अधिक मार गरीब तबके पर पड़ रहीं है। चैतरफा परेषानियों से घिरे इस तबके के उद्धार के लिए कोई प्रयास अब तक सफलतापूर्वक नहीं किए गए है। अपने काम में व्यस्त रहे मजदूरों के सिर पर उस वक्त असीम विपत्ति (असीम इसलिए क्योंकि विपत्तियों से तो उनका जन्म से ही नाता रहता है ) का पहाड़ टूट पड़ा जब जनता कफ्र्यू के बाद अचानक लाॅकडाॅउन लगा दिया गया। पहले से ही अव्यवस्थित जीवन जीने को मजबूर इस तबके पर कोरोना की मार अधिक जोर से पड़ी है। कुछ पैसा कमाने की आस इन्हे दूसरे राज्यों की ओर पलायन को मजबूर करती है। जिससे उन राज्यों में भी इनका जीवन छोटे से कमरे या झोपड़ पट्टियों में बीतता है। किसी का पूरा परिवार उनके साथ होता है तो कोई अकेला ही काम की तलाष में बाहर आ जाता है। ताकि परिवार के पास पैसे भेजकर कुछ मदद कर सकें। रोज कमाकर जो रोटी खाता है। उसे यह पता चले कि अब कल से वह सभी काम बंद कर दिए जा रहे है तो उनके अंदर चल रहे अंतरद्वंद को कोई नहीं रोक सकता । सोचिए! जो लोग किराए से रह रहे हो , सड़कों पर आश्रय लिए हो जिनके पास कल के खाने तक का इंतजाम नहीं हो ऐसे में एक लंबे समय तक काम बंदी का फैसला सनने के बाद उनके अंदर कितनी उथल - पुथल मची होगी । जाहिर है इन हालातों में वे अपने जन्म स्थान अपने गांव लौट जाने को आतुर होंगे ही लेकिन दूर - दूर तक कोई साधन नजर नहीं आ रहे हो। ऐसे में यदि किसी तरह सरकार उन्हें आष्वस्त कर भी दे तो कितने दिनों तक उन्हें रोका जा सकता है। लाॅकडाॅउन को एक माह से अधिक हो चुका है लेकिन अभी भी प्रवासी मजदूरों का पलायन जारी है। इससे साफ होता है कि सरकार अपनी सेवाओं से उन्हें संतुष्ट नहीं कर पा रही ंहै। सरकार ही नहीं विभिन्न स्वयं सेवी संस्थाएं भी जरूरतमंदों तक भोजन पहुंचाने के काम मंे जुटी हुई है। बावजूद इसके सभी जरूरतमंदों तक मदद नहीं पहुंच पा रहीं है। जिनके परिवार उनके साथ है उनका तो समय कट जाएगा लेकिन जिनका परिवार साथ नहीं उनकी स्थिति बहुत खराब है। इसलिए वे पैदल या साइकिल से कई - कई किलोमीटर की यात्राएं करने को मजबूर हो गए। पैदल जाते हुए जिन लोगों की जान गई उनके परिवार की जवाबदारी कौन लेगा और यदि सरकार ऐलान कर भी दे तो क्या वाकई उन तक सभी जरूरते समय रहते पहुंच पाएंगी। अभी भी सरकार ने जरूरतमंदों के लिए अतिरिक्त अनाज के वितरण की व्यवस्था की थी लेकिन वह सुविधा राषन कार्ड धारकों तक ही पहुंची । अन्य जरूरतमंद इससे वंचित ही रहे इसीलिए तो उन्होंने हजारों किलोमीटर की दूरी बिना साधन के तय करने में भी परहेज नहीं किया और फिर वे करते भी क्या ? आज जिस तरह सरकारें कोटा में पढ़ाई कर रहे अपने छात्रों को बुलाने का बीड़ा उठा रहीं है । वैसी जहमत किसी ने प्रवासी मजदूरों को उनके गांव तक पहुंचाने के लिए नहीं उठाई। इसलिए उनके मासूम बच्चों को भूख से किलपना पड़ा, गर्भवती महिलाओं को उसी स्थिति में पैदल मिलों चलना पड़ा, किषोरों को भूखे - प्यासे चलना पड़ा। इन विपरीत हालातों ने कईयों की जान ले ली कितना दुखद है। इनकी स्थितियों को देख आंखे भर आती है और मन कहता है हे भगवान गरीबी किसी के भाग्य में मत देना। पहले से ही अभावों में रह रहे गरीबों पर दूसरी विपत्तियां जीवन का संकट बनकर आती है। रोटी की तलाष में यदि यह मजदूर बाहर जाते है तो पुलिस के डंडे खाने पड़ते है। ऐसी ही कई कहानियां हैै इसी तरह रोटी की तलाष में बाहर निकले मजदूर का पुलिस की पिटाई से पैर टूट गया। पुलिस ने उसे लावारिस छोड़ दिया । अन्य लोगों ने उसे अस्पताल पहुंचाया इलाज कराया। पुलिस इस दौर में अपनी ड्यटी ईमानदारी से निभा रहीं है लेकिन इस तरह किसी के हाथ - पैर तोड़ देना उचित नहीं है। पहले उनकी मजबूरी को समझे और उनकी मदद का इंतजाम करें । वहीं जो वाकई बिना वजह बाहर घूम रहे है उन पर कार्रवाही करें। इसके लिए सभी उनका सम्मान कर रहे है, लेकिन किसी गरीब मजदूर को उसकी मजबूरी समझे बिना मारना, अनुचित है। कोरोना का संकट कुछ समय का नहीं बल्कि लंबे समय तक रहने वाला है। जानकारी के मुताबिक इस एक माह के लाॅकडाॅउन से करीब 10 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए है। अभी भी हालात सामान्य होने में काफी वक्त लगेगा उससे साफ जाहिर है कि बेरोजगारों और गरीबों का आंकड़ा और अधिक बढ़ेगा। कोरोना के इस कहर ने असंगठित वर्ग की रीढ़ को तोड़ दिया है। आम गरीब होने के चलते इस वर्ग की आह का षायद किसी को अहसास नहीं है। लेकिन यहीं वर्ग भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी है। इसी वर्ग के बिखरने का प्रभाव कहीं न कहीं अर्थव्यवस्था पर दिखाई अवष्य देगा। इस वर्ग को असहाय छोड़ने के बजाएं योजनाबद्ध रूप से यदि काम किया जाता तो वैष्विक महामारी से जूझते देष में इन्हें अलग - थलग नहीं होना पड़ता।

No comments:

Post a Comment