Wednesday, May 13, 2020

मजबूर मजदूर पर चुप्पी साधे रहे प्रधानमंत्री , पैदल अपने गांव जा रहे मजदूर आत्मनिर्भरता की मिसाल

महामारी के बाद मजबूर हुए मजदूरों की पीड़ादायक अंतहीन समस्याओं को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने अभिभाषण में कुछ नहीं कहा। लाॅकडाउन के बाद देषभर में मजदूरों का पलायन जारी है । पलायन के इस दौर में मजदूर की पीड़ा के झकझौर देने वाली तस्वीरे रोज न्यूज चैनलों व अखबारों के माध्यम से देख रहे है। औरंगाबाद हादसे में जान गंवाने वाले मध्यप्रदेष के 16 मजदूरों को देष भूला नहीं है। अभी भी रोज कोई न कोई मजदूर भूख, गर्मी व दुर्घटना में दम तोड़ रहा है। 40 - 45 डिग्री तापमान में गर्भवती महिलाएं, मासूम बच्चे हजारों किलोमीटर की यात्राएं कर रहे है। भरी गर्मी में भी कई मजदूर पैदल चल रहे है तो कई अपना सामान बेचकर , कहीं से पैसा उधार लेकर किराए पर गाड़ी करके अपने गंतव्य की ओर निकल पड़े है। हालात से मजबूर इन मजदूरों पर चैतरफा मार पड़ रहीं है। हालात के मारे मुंबई के भिवंडीे से लखनउ के लिए निकले मजदूरों ने एक टैंपों किया जिसमें करीब 19 मजदूर फंसकर जैसे तैसे बैठे। कुछ दूर आगे चलकर मुंबई में ही हाईवे पर जा रहीं तेज रफतार कार ने टैंपों को पीछे से टक्कर मार दी जिसमें ड्राइवर और उसके परिवार की मौत हो गई। इसी तरह दिल्ली से लखनउ जाने के लिए साइकिल पर निकले मजदूर को एक कार ने पीछे से टक्कर मार दी उसकी मौके पर ही मौत हो गई। इसी तरह फतहपुर से निकले एक मजदूर की रायबरेली में मौत हो गई। वहीं कुछ ऐसे भी है जिनके प्राण अपने गृह ग्राम में जाकर निकल गए। सोचिए क्या बीत रहीं होगी इन मजदूरों के परिवारों पर जानवरों की तरह ट्रकों में भरकर , तमाम परेषानियों से जूझते हुए , बचा कुचा सबकुछ बेचकर सिर्फ अपने गांव की ओर निकले मजदूरों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक षब्द तक नहीं बोला ? ठीक है आपने 20 हजार करोड़ के आर्थिक पैकेज की धोषणा कर दी लेकिन इसका फायदा आज सड़कों पर चल रहे मजदूरों को तो नहीं मिलेगी और ना ही उन्हें इस घोषणा के बारे में कुछ पता होगा । फिलहाल फौरी तौर पर उनके लिए प्रधानमंत्री क्या कर रहे है इसके बारे में कुछ भी उन्होंने नहीं कहा। हर तरफ से मार खा रहे मजदूरों को लेकर आपकी वर्तमान में क्या योजना है इसके बारे में आपने अपनी नीति स्पष्ट नहीं की। प्रधानमंत्री ने अपने अभिभाषण में कहा कि अब योजनाओं का पूरा लाभ लाभार्थियों तक पहुंचता है लेकिन धरातल पर ऐसा होता तो नहीं दिख रहा । जिस वक्त लाॅकडाउन की षुरूआत हुई थी उस वक्त सरकार ने और रिजर्व बैंक ने कहा था कि देष में खाद्यान की कोई कमी नहीं है। लेकिन सड़कों पर हजारों किलोमीटर पैदल चलते मजदूरों को देखकर तो ऐसा नहीं लगता कि उन्हें राषन मुहैया कराया गया होगा? खाने - पीने और सुरक्षा की व्यवस्था होती तो कौन मजदूर अपनी जान पर खेलकर इतना लंबे सफर के लिए इस तरह निकल पड़ते। यहीं नहीं गर्भवती महिलाएं जिनका 8 वां 9 वां महिना चल रहा है। चिलचिलाती धूप में बिना पानी , खाने के लिए बस लगातार चली जा रहीं है। रायपुर से ऐसी तस्वीर सामने आई जिसमें महिला ने सड़क पर बच्चे को जन्म दिया दो घंटे के विश्राम के बाद मजदूरों का दल अपने गंतव्य के लिए फिर रवाना हो गया । नवजात बच्चे को लेकर मां फिर हजारों मील की यात्रा के लिए पैदल चल पड़ी। 20 हजार करोड़ के आर्थि क पैकेज का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री को अर्थव्यवस्था की नींव मजदूरों की याद नहीं आई। सूरत में हजारों की तादात में मजदूर लगभग रोज विरोध के लिए सड़कों पर उतर रहे है। सोमवार को तो तमाम मजदूर हाथ में घर पहुंचाने से जुड़े बैनर लेकर विरोध प्रदर्षन करते नजर आएं। लेकिन राज्य सरकारों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रहीं है। कई किलोमीटर की यात्रा तय कर मप्र पहुंचे मजदूरों को महाराष्ट्र और मप्र की बाॅर्डर पर रोक दिया गया। चिलचिलाती धूप में मजदूर परेषान होते रहे। आखिर सारे जुल्म मजदूरों पर ही क्यों ढाएं जा रहे है। कालाबाजारी करने वाले भी मजदूरों से पैसा वसूल रहे है दो हजार की साइकिल 4 हजार में दे रहें है। अपनी गाड़ी में बैठाने के लिए मनमाना किराया वसूल कर रहे है। अपना सबकुछ लूटा - पिटा कर जैसे - तैसे घर पहुंच रहे मजदूरों को भी आसानी से गांव में घुसने नहीं दिया जा रहा है। कई मजदूरों को उनके गांव के बाहर ही रोक दिया गया है । छोटे बच्चे है उनके लिए दूध पानी तक का प्रबंध नहीं हएो पा रहा है। लाखों मजदूरों की अंतहीन पीड़ा दायक कहानियां चारों तरफ है जहां देखेंगे उनकी ऐसी समस्याएं नजर आएंगी आपकी नजरें षर्म से झुक जाएंगी। इसलिए यदि किसी काम से घर से निकले हाथ में एक थैले में पानी , कुछ खाने का सामान , चप्पल साथ लेकर निकले यदि कोई मजदूर दिखे तो उसकी इतनी मदद तो कर सकें। चल - चल कर उनकी चप्पलें घिस गई है ऐसी तस्वीरें आई थी जिसमें मजदूर ने प्लास्टिक की बाटल को पैर के नीचे रखकर सफर किया था। मजदूरों की इन भयावह , पीड़ादायक समस्याओं का मजदूर तुरंत समाधान चाहता है और प्रधानमंत्री योजना बनाकर उन्हें लाभ देने पर विचार कर रहे है क्योंकि मजदूर मजबूर है। सरकार उन्हें अपनी उंगलियों पर नचाएंगी और बेचारा मजदूर क्या करेगा।

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