Wednesday, May 20, 2020

महामारी में सरकार की निष्ठुरता जग जाहिर पूर्व नियोजन के बिना लगाया लाॅकडाॅउन

औरंगाबाद में मालगाड़ी से कटे 16 प्रवासी मजदूर, और्रया सड़क हादसे में 24 मजदूरों की दर्दनाक मौत हादसे थमें नहीं है और ना ही मजदूरों के पैर थमे है। अभी भी देषभर के अलग- अलग हिस्सों से मजदूरों के सड़कों पर चलने की तस्वीरें दिखाई दे रहीं है। मजबूर मजदूरों की इस अंतहीन व्यथा के लिए जिम्मेदार केंद्र सरकार व तमाम राज्य सरकारें है। आखिर इन मजदूरों की गिनती सरकार के लिए नागरिकों में है भी या नहीं । जिस तरह की दर्दनाक, रूला देने वाली मजदूरों की दांस्ताने दुनिया के सामने है। विभिन्न सामाजिक संस्थाएं व समाजसेवी जन अपनी ओर से इन मजदूरों के खाने- पीने का इंतजाम कर रहे है। लेकिन सरकारे निष्ठुरता की हदे पार कर रहीं है। प्रषासन मजदूरों के षवों और घायलों को एक साथ भेजने जैसी असंवेदनहिनता का दर्षन करा रहा है। मजदूरों की हादसों में मृत्यु होने के बाद चैतरफा विरोध होने के बाद सरकारे अपनी कुर्सी बचाने के लिए झूठी संवेदनषीलता का प्रदर्षन कर मजदूरों को और परेषान कर रहीं है। उन्हें राज्यों की बाॅर्डर पर रोका जा रहा है। कुछ बसें व ट्रेन चलाकर उन्हें घरो तक पहुंचाने की कमजोर कोषिषेकी जा रहींहै । पैदल चलते मजदूर महामारी की पहचान कोविड - 19 जैसी महामारी को लेकर सरकार की योजनाएं पूर्णतया असफल रहीं है। नोटबंदी की तरह अचानक देषभर में लाॅकडाउन घोषित कर दिया गया। उस समय सरकार ने इन आठ करोड़ प्रवासी मजदूरों के बारे में एक बार भी नहीं सोचा। तमाम जगद्दोजहत व परेषानियां झेलते हुए एक - दो नहीं हजारों किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर जाते मजदूर इस संकट की सबसे दर्दनाक तस्वीर है। क्या सरकरों को इनकी कोई जानकारी नहीं थी ? क्या सरकार को नहीं पता था कि ये लोग दिहाड़ी मजदूरी करते है? प्रधानमंत्री ने कहा था कि घर पर रहिए, घर पर रहिए और सिर्फ घर पर ही रहिए। तब प्रधानमंत्री जी नहीं जानते थे कि देषभर में प्रवासी मजदूर किस तरह से एक घर में किराए से कितनी मुष्किल में रहते है। तो सिर्फ घर पर किस प्रकार रह सकते है ? क्या सरकार ने तमाम मकानमालिकों से इस बात के लिए लिखित दस्तावेज लिए थे कि वे इस मुष्किल घड़ी में अपने किराएदारों से किराया नहीं मांगेंगे या मजदूरों के लिए पहले से रहने के अन्य व्यवस्थित इंतजाम किए थे ? कंेद्र व राज्य सरकारों ने जरूरतमंदों के लिए कुछ नहीं किया । बिना तैयारी के बस लाॅकडाॅउन घोषित कर दिया। जबकि यदि मार्च के षुरूआती दौर में ही इन तमाम मजदूरों को व्यवस्थित ढंग से ट्रेनों व बसों के माध्यम से अपने - अपने घर पहुंचाया जा सकता था। सरकार ने मजदूरों के प्रति घोर लापरवाही व गैर जिम्मेदारी का प्रदर्षन किया जिसका खामियाजा मजदूरों के मासूम बच्चों, गर्भवती महिलाओं व स्वयं मजदूरों को भोगना पड़ रहा है। महामारी से तो नहीं लेकिन मजदूर भुखमरी व हादसों के षिकार अधिक हो रहे है। लाषों के लिए ट्रेनें चलाई लाॅकडाॅउन लगाने के बाद जब षुरूआत में मजदूर पैदल चलते दिखे और सोषल मीडिया सहित कुछ मीडिया संस्थानों ने इनके संबंध में बात करना षुरू किया । जैसे - जैसे मजदूरों की व्यथा उजागर हुई तो कुछ जगहों से बसों की सुविधा षुरू की गई लेकिन बाद में उसे बंद कर दिया । लाॅकडाॅउन के चरण बढ़ते चले गए और मजबूर मजदूर वापस पैदल चलने को मजबूर हो गए। फिर वे हादसों का षिकार होने लगे बाद में प्रषासन ने उनके षवों को ट्रेन से पहुंचाने का काम किया । अगर पहले ही उनके लिए अधिक से अधिक वाहनों का प्रबंध कर दिया जाता तो इनती भयावह स्थितियों का षिकार होने से मजदूर बच जाता। अभी भी सरकारे मजदूरों की मदद के लिहाज से नहीं अपने कुप्रषासन के चेहरे को छिपाने के लिए मजदूरों को जगह - जगह रोककर उनके लिए बसों के प्रबंधन करने की बाते कर रहीं है। मंगलवार को भी बांद्रा में मजदूरों की भारी भीड़ उमड़ आई , गाजीपूर बाॅर्डर पर भी भारी संख्या में प्रवासी मजदूर इकट्ठा हुए। यानि सरकार के वर्तमान प्रयास भी मजदूरों की संख्या के हिसाब से नाकाफी साबित हुए है। बसों पर राजनीति बेबस मजदूर की आंखों में बस किसी तरह अपने गांव पहुंच जाने की बेबसी है। मजबूर मजदूरों पर हो रहीं खोखली राजनीति से बेखबर मजदूर अपने गंतव्य तक पहुंचने की नाकाम कोषिषे कर रहा है। मजदूरो को तुरंत मदद करने के बजाएं फिलहाल बसों को लेकर राजनीति करने में नेतागण व्यस्त है। पिछले 55 दिनों से प्रवासी मजदूरों की पैदल चलने व छुपते छुपाते किसी तरह अपने घर पहुंचने और हादसों के षिकार होेने की तस्वीरे सामने आने के बाद कांग्रेस ने प्रवासी मजदूरों के लिए एक हजार बसों का इंतजाम करने की इजाजत यूपी सरकार से पत्र के माध्यम से मांगी। प्रियंका गांधी ने यूपी सरकार को इस बाबत पत्र लिखा इसके बाद भाजपा ने सहमति देकर पत्राचार की राजनीति की षुरूआत कर दी । सहमति देने के बाद बसों का फिटनेस, लाइसेंस जैसे कागजी बातों के जरिए अडंगा लगाना षुरू कर दिया। कागजी राजनीति जारी है और बसों के पहिए थमे हुए है। बेवजह खींजती दिखीं वित्त मंत्री बीस लाख हजार करोड़ के पैकेज का विस्तृत विवरण देने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को लगातार चार दिनों तक प्रेस कांफ्रेंस करनी पड़ी। अंतिम प्रेस कांफ्रेंस के दिन राहुल गांधी पर पूछे गए एक सवाल पर उन्हें इतना गुस्सा आ गया जिसने सरकार की नाकामयाबियों के नकाब को उतार दिया। खींजते हुए उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने सड़क किनारे बैठे मजदूरों से बात कर उनका समय खराब कर दिया। इससे तो अच्छा होता कि वे उनका सामान लेकर उनके साथ पैदल चलते। उनके लिए बसों का इंतजाम करते । कह तो इस तरह रहीं थी जैसे ना जाने कितने भाजपाई अभी तक मजदूरों का सामान उठाने में मदद कर चुके हो । अब जब प्रियंका गांधी ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया तो प़त्राचार की राजनीति षुरू कर दी। राहुल गांधी के प्रष्न पर निर्मला सीतारमण की खींज ने सबकुछ उजागर कर दिया है। साफ है कि प्रवासी मजदूरों की वास्तविक तस्वीर हर आम आदमी का दर्द बनती जा रहीं है और उनकी तरफ सरकार की लापरवाही , कुव्यवस्था उजागर हो चुकी है।

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